थोड़ी देर के लिए कल्पना करे कि देश में न्याय पालिका न हो तो क्या हो ? मनुष्य जिस तेजी से संवेदना शुन्य हो कर अपनी ही प्रजाति को नष्ट करने पर तुला है उसकी तुलना आदिम समाज और जानवरों से भी नहीं की जा सकती। चुनी हुई सरकारें अवाम को अपने हासिल वोट प्रतिशत से ज्यादा तव्वज्जो नहीं देती , उन्हें मालुम है कि अगले चुनाव पांच साल बाद आने वाले है और लोगों की स्मरण शक्ति बेहद कमजोर है।
देश के नौ राज्यों में सूखा अपने चरम पर है परन्तु जिम्मेदार आँख मूंदे हुए है। आत्म मुग्धता का यह आलम है कि कल तक जो जनता की परेशानियों पर तड़प जाया करते थे उन्हें आज अपने सिवाय और कुछ नजर नहीं आ रहा। इन हालात में supreme court का स्वयं संज्ञान लेकर हरकत में आना सुकून देता है। महाराष्टृ के कुछ क्षेत्रों में सूखे के कहर ने गजब ढाया है। पीड़ित किसानों की आत्म ह्त्या की ख़बरें लम्बे समय से सुर्ख़ियों में है परन्तु कहीं ऐसा नहीं लगता कि अवाम की संवेदनाओ में उसे लेकर कही कोई स्पंदन है। विदर्भ , मराठवाड़ा , लातूर, पंढरपुर कुछ ऐसे क्षेत्र है जहाँ प्रकृति का कहर पुरे शबाब पर है। ऐसे हालात में मीडिया और कोर्ट ने जब आईपीएल के मैचों में पानी की बर्बादी पर सवाल उठाया तो सारे देश की नजर में यह बात आयी।
इन विकट हालातों में भी कुछ लोग है जो बगैर किसी शोशेबाजी के सूखा पीड़ितों के लिए लम्बे समय से काम कर रहे है। फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर इन्ही लोगों में प्रमुख है। स्वभाव से अक्खड़ , मनमौजी , और बगैर लॉग लपेट के बात करने वाले नाना का जुड़ाव सामाजिक सरोकारों से बहुत पुराना है। नर्मदा आंदोलन के शीर्ष पर बाबा आमटे और मेघा पाटकर के साथ जमीन पर बैठकर पीड़ितों को ढांढस बंधाते उन्हें सभी ने देखा है। तारीफ़ की बात यह कि इस सक्रियता को उन्होंने कभी अपने पक्ष में नहीं भुनाया।
1990 में दूरदर्शन और NFDC ने एक अलग तरह की फिल्म को produce किया था '' थोड़ा सा रूमानी हो जाए '' इस फिल्म के डायरेक्टर अमोल पालेकर थे। फिल्म की केंद्रीय भूमिका में नाना पाटेकर के साथ अनिता कँवर थी ( बुनियाद ). नाना ने इस फिल्म में एक ऐसे ठग का किरदार निभाया था जो अपनी बातों से निराश लोगों में उम्मीद जगाता है। द्रष्ट धूम नीलकंठ बारिशकर नाम का यह ठग ऐसे इलाकों में जाता है जहां लंबा सूखा पड़ा है। यह लोगों को समझाता है कि वह बारिश करा सकता है। बहुत थोड़े बजट में बनी यह फिल्म नाना के काव्यात्मक डॉयलॉग के लिए आज भी याद की जाती है।
आज नाना यही काम वास्तविक जीवन में चुपचाप और निस्वार्थ भाव से कर रहे है। अपने हालात से निराश हो चुके लोगों को इस फिल्म के गीत की यह पंक्ति अवश्य गुनगुनानी चाहिए कि '' मुश्किल है जीना , उम्मीद के बिना , चल थोड़ा सा रूमानी हो जाए।
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