कल चौदवीः की रात थी , शब भर रहा चर्चा तेरा
कुछ ने कहा ये चाँद है , कुछ ने कहा चेहरा तेरा
देखते देखते तीन बरस निकल गए जगजीत को गये को। दुनियादारी की भागदौड़ में फिर भी कभी अनायास ही उनकी गजल का कोई टुकड़ा हौले से यादों को झकजोर जाता है। एक दौर था जब जगजीत केवल कैसेट पर ही उपलब्ध हुआ करते थे और महीने में एक कैसेट खरीदने के लिए कई दिन तक सोंचना पड़ता था। उनकी गजलों के कैसेट का संग्रह लाखों घरों में आज भी मौजूद होगा क्योंकि टेप रिकॉर्ड को भी गुजरे अरसा हो गया है। हर साल दिवाली पर दराज का वह हिस्सा झाड़ फूंक कर बंद कर दिया जाता है जिसमे जगजीत का वह कलेक्शन आज भी मौजूद है। हिम्मत नहीं होती उन कैसेट्स को कबाड़े में बेचने की। जगजीत का पूरा कलेक्शन आज सिर्फ एक डिस्क में समा गया है। खुद जगजीत कह गए थे '' वक्त रुकता नहीं कहीं टिक कर इसकी आदत भी आदमी सी है ''
विख्यात पत्रकार रविश कुमार लिखते है '' जगजीत की गजले सामूहिकता का निर्माण करती है परन्तु आदमी को अकेला कर देती है'' . जगजीत को सुनते वक्त आप वहां नहीं होते जहाँ उनकी मखमली आवाज घुल रही है। आप कही दूर निकल जाते है। सुनने वाले के चेहरे पर एकांत बिखर जाता है। सुनने वाला या सुनने वाली उस समय किस के साथ होते है पता नहीं चलता। हरेक अपने अधूरे ख्वाब को तलाशने निकल पड़ता है।
जगजीत को सुनना बंद मत कीजिये। सुनते रहिये। अपने अकेलेपन को भरने के लिए जगजीत की गजलों से बड़ा कोई साथी नहीं है या भीड़ हो चुकी जिंदगी में अकेलापन भरने के लिए इससे बेहतर विकल्प नहीं है।
कुछ ने कहा ये चाँद है , कुछ ने कहा चेहरा तेरा
देखते देखते तीन बरस निकल गए जगजीत को गये को। दुनियादारी की भागदौड़ में फिर भी कभी अनायास ही उनकी गजल का कोई टुकड़ा हौले से यादों को झकजोर जाता है। एक दौर था जब जगजीत केवल कैसेट पर ही उपलब्ध हुआ करते थे और महीने में एक कैसेट खरीदने के लिए कई दिन तक सोंचना पड़ता था। उनकी गजलों के कैसेट का संग्रह लाखों घरों में आज भी मौजूद होगा क्योंकि टेप रिकॉर्ड को भी गुजरे अरसा हो गया है। हर साल दिवाली पर दराज का वह हिस्सा झाड़ फूंक कर बंद कर दिया जाता है जिसमे जगजीत का वह कलेक्शन आज भी मौजूद है। हिम्मत नहीं होती उन कैसेट्स को कबाड़े में बेचने की। जगजीत का पूरा कलेक्शन आज सिर्फ एक डिस्क में समा गया है। खुद जगजीत कह गए थे '' वक्त रुकता नहीं कहीं टिक कर इसकी आदत भी आदमी सी है ''
विख्यात पत्रकार रविश कुमार लिखते है '' जगजीत की गजले सामूहिकता का निर्माण करती है परन्तु आदमी को अकेला कर देती है'' . जगजीत को सुनते वक्त आप वहां नहीं होते जहाँ उनकी मखमली आवाज घुल रही है। आप कही दूर निकल जाते है। सुनने वाले के चेहरे पर एकांत बिखर जाता है। सुनने वाला या सुनने वाली उस समय किस के साथ होते है पता नहीं चलता। हरेक अपने अधूरे ख्वाब को तलाशने निकल पड़ता है।
जगजीत को सुनना बंद मत कीजिये। सुनते रहिये। अपने अकेलेपन को भरने के लिए जगजीत की गजलों से बड़ा कोई साथी नहीं है या भीड़ हो चुकी जिंदगी में अकेलापन भरने के लिए इससे बेहतर विकल्प नहीं है।
"गजल सम्राट की सागर सी गहरी आवाज FM चैनलो पर हर रविवार की रात रौशन करती हैं । "जाने वो कौन सा देश, जहाँ तुम चले गये"..... पर जगजीतजी की आवाज सदा हमारे साथ हैं ।
ReplyDeleteसही कहा है आपने- अपने अकेलेपन को भरने के लिए जगजीत की गजलों से बड़ा कोई साथी नहीं है...
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