1993 में आई फिल्म जुरासिक पार्क को भला कौन भूल सकता है। इस फिल्म स्मरण करते ही हमारे जेहन में खूंखार डायनासौर उभर आते है और उभर आता है इस फिल्म का केंद्रीय पात्र - सफ़ेद कपड़ों में नफासत से छड़ी टेक कर चलता ठिगना सा अहंकारी अरबपति बूढ़ा , जॉन हेमांड , जुरासिक पार्क का मालिक। ये शख्स थे सर रिचर्ड एटनबरो जो अपने 91 वे जन्मदिन से पहले (24 अगस्त ) दुनिया को अलविदा कह गए।
सर रिचर्ड एटनबरो का भारत से काफी पुराना नाता रहा है। 1963 में उन्होंने अपनी फिल्म की पटकथा नेहरूजी को दिखाई थी परन्तु कुछ बात नहीं बनी। 1977 में वे सत्यजीत रे की फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी ' में एक क्रूर जनरल ओट्रम के रूप में नजर आये . मात्र 12 वर्ष की उम्र में अपना फ़िल्मी सफर आरम्भ करने वाले सर रिचर्ड की फिल्मों और मिले सम्मानों का जिक्र करने लिए यह ब्लॉग बहुत छोटा है। मगर एक फिल्म जिसने उन्हें अमर कर दिया वह थी '' गांधी ''. 1982 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने पिता पंडित नेहरू का वादा निभाया और एटनबरो को फिल्म बनाने की अनुमति प्रदान की। बीस वर्षों की मेहनत का परिणाम यह था की फिल्म का हरेक पात्र इस तरह सामने आया जैसे वह गांधी युग से ही चलकर आरहा हो। इस फिल्म के रीलिज होते ही युवा पीढ़ी के साथ सारी दुनिया ने एक बार पुनः गांधी के विचारों को जाना। गांधी फिल्म को आठ ऑस्कर अवार्ड मिले और भारत सरकार ने 1983 में सर रिचर्ड एटनबरो को पदम भूषण नवाजा।
इतिहास का यह अजीब संयोग है की जिस ब्रिटिश साम्राज्य को महात्मा गांधी ने उखाड़ फेंका उसी ब्रिटिश कौम के एक नागरिक ने उनपर कालजयी फिल्म बनाकर अपनी आदरांजलि अर्पित की। अगर आपने यह फिल्म अब तक नहीं देखी तो सारे काम छोड़ कर अवश्य ही देखे।
सर रिचर्ड एटनबरो का भारत से काफी पुराना नाता रहा है। 1963 में उन्होंने अपनी फिल्म की पटकथा नेहरूजी को दिखाई थी परन्तु कुछ बात नहीं बनी। 1977 में वे सत्यजीत रे की फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी ' में एक क्रूर जनरल ओट्रम के रूप में नजर आये . मात्र 12 वर्ष की उम्र में अपना फ़िल्मी सफर आरम्भ करने वाले सर रिचर्ड की फिल्मों और मिले सम्मानों का जिक्र करने लिए यह ब्लॉग बहुत छोटा है। मगर एक फिल्म जिसने उन्हें अमर कर दिया वह थी '' गांधी ''. 1982 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने पिता पंडित नेहरू का वादा निभाया और एटनबरो को फिल्म बनाने की अनुमति प्रदान की। बीस वर्षों की मेहनत का परिणाम यह था की फिल्म का हरेक पात्र इस तरह सामने आया जैसे वह गांधी युग से ही चलकर आरहा हो। इस फिल्म के रीलिज होते ही युवा पीढ़ी के साथ सारी दुनिया ने एक बार पुनः गांधी के विचारों को जाना। गांधी फिल्म को आठ ऑस्कर अवार्ड मिले और भारत सरकार ने 1983 में सर रिचर्ड एटनबरो को पदम भूषण नवाजा।
इतिहास का यह अजीब संयोग है की जिस ब्रिटिश साम्राज्य को महात्मा गांधी ने उखाड़ फेंका उसी ब्रिटिश कौम के एक नागरिक ने उनपर कालजयी फिल्म बनाकर अपनी आदरांजलि अर्पित की। अगर आपने यह फिल्म अब तक नहीं देखी तो सारे काम छोड़ कर अवश्य ही देखे।