हिंदी फिल्मे आय के नए रिकॉर्ड बना रही है। हर सितारा कमाई के ऐसे शिखर बना रहा है जिसे पहले कभी नहीं सोंचा गया। अकल्पनीय धन की इस बारिश में फिर भी कुछ रिता सा है। समस्त ब्लॉक बस्टर फिल्मों में एक बात समान है - सभी फिल्मे किसी न किसी फिल्मो की रीमेक है। चाहे फिर सलमान की ' किक ' हो या देवगन की ' सिंघम रिटर्न '
भले ही कोई इस बात को न माने परन्तु यह सत्य है कि बॉलीवुड इस समय कहानी के अकाल से जूझ रहा है। ख्यातनाम निर्माता निर्देशक थोक में सफल दक्षिण भारतीय फिल्मों के अधिकारों का सौदा कर रहे है। इस समय बॉलीवुड के ' बिग डैडी ' करण जोहर और रोहित शेट्टी सिर्फ और सिर्फ रीमेक पर ही काम कर रहे है। विदित हो कि करण जौहर ने घोषणा की है कि अस्सी के जमाने की सुपर हिट ' राम लखन ' के लिए सुभाष घई से चर्चा कर रहे है वहीँ रोहित शेट्टी शाहरुख़ के साथ अमिताभ बच्चन की ' हम ' का रीमेक प्लान कर रहे है।
इस दौर में फिल्मे माध्यम से ज्यादा अर्थशास्त्र हो गई है। पूंजी निवेश पर बेहतर रिटर्न की कामना करना हरेक फिल्म निर्माता का सपना होता है परन्तु जोखिम के नाम पर उधार की कहानी से पैसे बनाना कहाँ तक उचित है ? आश्चर्य होता है की फिल्म इंडस्ट्री में बरगद की तरह जड़े जमाये लोग भी मौलिकता अपनाना नहीं चाहते।
शाहरुख़ की आगामी फिल्म ' हैप्पी न्यू ईयर ' ट्रेलर में भी न जाने क्यों जॉर्ज क्लूनी की ocean eleven की याद दिला रही है . पैसा वसूल दौर में सफलता का आग्रह विराट हो गया है , फिर चाहे फिल्म आठवे दिन ही दर्शक के दिलों दिमाग से विस्मृत हो जाए। बेचारा दर्शक , न जाने कब तक बासी खिचड़ी नये बर्तन में खाता रहेगा.
वैसे तो देश में लेखकों की कोई कमी नहीं है। हिंदी के साथ समस्त प्रादेशिक भाषाओ में भी ढेरों कहानियाँ पाठको के अलावा दर्शकों तक जाने को बेताब है परन्तु तथाकथित प्रयोगधर्मी निर्माता - निर्देशक आजमाए फार्मूले से आगे बढ़ने को तैयार नहीं है। सिर्फ दर्शक ही इन ( रीमेक ) फिल्मों को नकार कर अपना निर्णय सुना सकते है।
भले ही कोई इस बात को न माने परन्तु यह सत्य है कि बॉलीवुड इस समय कहानी के अकाल से जूझ रहा है। ख्यातनाम निर्माता निर्देशक थोक में सफल दक्षिण भारतीय फिल्मों के अधिकारों का सौदा कर रहे है। इस समय बॉलीवुड के ' बिग डैडी ' करण जोहर और रोहित शेट्टी सिर्फ और सिर्फ रीमेक पर ही काम कर रहे है। विदित हो कि करण जौहर ने घोषणा की है कि अस्सी के जमाने की सुपर हिट ' राम लखन ' के लिए सुभाष घई से चर्चा कर रहे है वहीँ रोहित शेट्टी शाहरुख़ के साथ अमिताभ बच्चन की ' हम ' का रीमेक प्लान कर रहे है।
इस दौर में फिल्मे माध्यम से ज्यादा अर्थशास्त्र हो गई है। पूंजी निवेश पर बेहतर रिटर्न की कामना करना हरेक फिल्म निर्माता का सपना होता है परन्तु जोखिम के नाम पर उधार की कहानी से पैसे बनाना कहाँ तक उचित है ? आश्चर्य होता है की फिल्म इंडस्ट्री में बरगद की तरह जड़े जमाये लोग भी मौलिकता अपनाना नहीं चाहते।
शाहरुख़ की आगामी फिल्म ' हैप्पी न्यू ईयर ' ट्रेलर में भी न जाने क्यों जॉर्ज क्लूनी की ocean eleven की याद दिला रही है . पैसा वसूल दौर में सफलता का आग्रह विराट हो गया है , फिर चाहे फिल्म आठवे दिन ही दर्शक के दिलों दिमाग से विस्मृत हो जाए। बेचारा दर्शक , न जाने कब तक बासी खिचड़ी नये बर्तन में खाता रहेगा.
वैसे तो देश में लेखकों की कोई कमी नहीं है। हिंदी के साथ समस्त प्रादेशिक भाषाओ में भी ढेरों कहानियाँ पाठको के अलावा दर्शकों तक जाने को बेताब है परन्तु तथाकथित प्रयोगधर्मी निर्माता - निर्देशक आजमाए फार्मूले से आगे बढ़ने को तैयार नहीं है। सिर्फ दर्शक ही इन ( रीमेक ) फिल्मों को नकार कर अपना निर्णय सुना सकते है।
right sir ajj koi kuch nya nhi la rha sub purani chije he dikha rahe hai isbaat pr koi dhiyan nhi de rha
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