अस्सी के दशक में टेलीविजन के उदभव और नब्बे के दशक में सेटे लाइट चैनलों की बारिश ने रेडियो को पहले ड्राइंग रूम से बाहर किया और फिर घर से रुखसत किया। उस दौर में लोगों की दिनचर्या आकाशवाणी के सुबह के समाचारों से बंधी होती थी। समाचारों के पहले बजने वाली बीप - बीप की ध्वनि घडी मिलाने का जरिया हुआ करती थी। दस मिनिट के हिंदी समाचारों के ठीक बाद अंग्रेजी समाचार ( हूबहू अनुवाद ) अंग्रेजी सीखने की मुफ्त कोचिंग हुआ करता था। देवकी नंदन पांडे , इला भट्ट , बरुण हलधर , मेलवेल डिमेलो स्टार समाचार वाचक थे। यही हाल रेडिओ सीलोन का हुआ करता था। नए पुराने गीत सबसे ज्यादा वही सुनाई देते थे। रेडियो सीलोन की उदघोषिकाओ के बोलने का अटपटा नमकिनी , जुकामी अंदाज चर्चा का विषय हुआ करता था। बुधवार और रविवार के दिन अमीन सयानी और तब्बस्सुम के नाम हुआ करते थे। आकाशवाणी को कोई टक्कर देता था तो सिर्फ रेडिओ सीलोन।
सन 2000 आते आते देश की फिजाओ में निजी रेडिओ स्टेशनों ने अपनी संगीत लहरियां बिखेरना आरम्भ कर दी थी। इसके उदघोषकों को रेडिओ जॉकी कहा जाने लगा। इन 'आर जे' ने जिनकी उम्र महज बीस पच्चीस वर्ष हुआ करती थी अपनी' हिंगलिश' से ऐसा समां बाँधा कि पूरी महानगरीय युवा पीढ़ी ऍफ़ एम रेडिओ की मुरीद हो गई।
अचानक से सुचना प्रसारण मंत्रालय के बोझिल और उम्रदराज नौकरशाहों को अहसास हुआ कि आकाशवाणी इन ऍफ़ एम स्टेशनों से पिछड़ रही है , लिहाजा तुरत फुरत निर्णय लिया गया है कि अब वे भी अपने सौ से अधिक स्टेशनों में रेडियो जॉकी नियुक्त करेंगे। आकाशवाणी आज अपनी हारी हुई लड़ाई लड़ रहा है। निजी ऍफ़ एम चैनल जिस रफ़्तार से भाग रहे है उस हिसाब से आकशवाणी के अच्छे दिन दूर प्रतीत हो रहे है।
संसद में पूर्व यूपीए सरकार के पास 800 नए ऍफ़ एम चैनलों को आरम्भ करने का प्रस्ताव था जिसे निश्चित तौर पर मोदी सरकार हरी झंडी दिखाएगी। उस द्रश्य की कल्पना करना आसान है जब छोट कस्बों में भी ऍफ़ एम चैनलों का डिजिटल संगीत सुनाई देगा . आकशवाणी ने उससे निपटने लिए कुछ तो सोंच ही रखा होगा।
(वास्तविकता - इस समय देश में आकाशवाणी के 171 व निजी ऍफ़ एम स्टेशनों की संख्या 248 है। जो की जनसँख्या के मान से काफी कम है। अमेरिका में इस समय ऍफ़ एम के 6224 स्टेशन है जबकि शैक्षणिक कार्यक्रम प्रसारित करने वाले 2447 ऍफ़ एम स्टेशन अलग से है )
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