खबर है की धारावाहिक 'तमस' [नब्बे के दशक में दूरदर्शन पर बहुत सराहा गया धारावाहिक जो की. देश के बटवारे पर आधारित भीष्म साहनी के उपन्यास तमस पर आधरित था ] को एडिट कर चार घंटे की फिल्म में समेट कर ६ नवम्बर को प्रदर्शित किया जारहा है . अपने स्वर्णिम काल में दूरदर्शन ने जो यादगार कार्यक्रम दिए थे उनकी तुलना आज किसी भी धारावाहिक या चेनल से नहीं की जा सकती . श्याम बेनेगल का ''भारत एक खोज '' शरद जोशी का लिखा '' ये जो है जिन्दगी '' विजय तेंदुलकर का ''रजनी '' अपनी कथा वस्तु और स्पस्ट ता के लिए आज भी याद किया जाता है . वर्तमान में टेलीविजन देखने वाली पीढ़ी को नहीं मालुम उन्हें क्या अच्छा नहीं मिला है आज तक . तमस जेसे धारावाहिक का फिल्म के रूप में प्रदर्शित होना सौभाग्य है इस पीढ़ी का .
सबसे बड़ी बात है तमस में बंटवारे का दर्द जेसा उपन्यास में महसूस हुआ था वेसा गोविन्द निहलानी ने टी .वी . स्क्रीन पर अनुभव करा दिया था . ऐसा बहुत कम होता है कि निर्देशक लेखक जेसी तीव्रता उत्पन्न करदे . शब्दों को द्रश्य में बदल देना चमत्कार से कम नहीं है . ''भारत एक खोज '' पंडित जवाहर लाल नेहरु का लिखा ऐसा एतिहासिक दस्तावेज है जिसकी मिसाल दुनिया में कम ही मिलती है . पंडितजी के विचारों को द्रश्य में बदलने का भागीरथी कार्य श्याम बेनेगल ने किया था , जो की आज मूल ग्रन्थ के बराबर ही स्मरणीय है .खुशवंत सिंह के मशहूर उपन्यास ''ट्रेन टू पाकिस्तान '' पर बनी फिल्म कमाल की थी . पढना और देखना - दोनों ही दहला के रख देता है.मारिओ पूजो के लिखे गोडफादर को फ्रांसिस फोर्ड कोप्पोला ने जिस खूबी से परदे पर उतारा था उसका चुम्बकीय जादू आज तक कम नहीं हुआ है .

सभी लेखकों की कृतिया सफल फिल्म बन गई हो ऐसा भी नहीं है . कई कालजयी किताबे है जिन्हें उचित बर्ताव नहीं मिला . सबसे उल्लेखनीय स्व. श्रीलाल शुक्ल की लिखी '' राग दरबारी '' है . अस्सी के दशक में इस व्यंग उपन्यास पर बने धारावाहिक को ओम पूरी की मौजूदगी भी सफल नहीं करा सकी थी . अम्रता प्रीतम के देश के बंटवारे पर लिखे उपन्यास ''पिंजर '' को उस समय की सनसनी उर्मिला मार्तोंडकर और चन्द्र प्रकाश दिवेदी का पारस स्पर्श सफल नहीं करा सका था .
शब्दों को आकार देने की चुनोती बहुत कम निर्देशकों ने स्वीकारी है . आज भी भारतीय साहित्य का भण्डार अच्छे फिल्मकारों की शिद्दत से बाट जो रहा है .
शब्दों को आकार देने की चुनोती बहुत कम निर्देशकों ने स्वीकारी है . आज भी भारतीय साहित्य का भण्डार अच्छे फिल्मकारों की शिद्दत से बाट जो रहा है .
बहुत अच्छा लिखा है सर जी. बेहतरीन जानकारी.
ReplyDeleteबढिया लेख।
ReplyDeleteमैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे तमस, हम लोग और बुनियाद, ये जो है जिंदगी जैसे धारावाहिक उस दौर में देखने मिले थे।
आभार।
Mahatvapurn jaankari. Intajar rahega is film ka.
ReplyDelete