अपने जन्म दिन से ठीक दो दिन पहले अमिताभ हनुमान चालीसा का पाठ अपनी आवाज में पेश कर चुके है . एक गुस्सेल यूवक का यूँ आस्था का पुरोधा हो जाना आश्चर्य का विषय नहीं है . अर्श से फर्श पर आकर अमिताभ ने जीवन के प्रति अपना नजरिया बदला है . के बी सी प्रथम ने जंहा उन्हें अपनी खोई जमीन हांसिल करने में मदद की वंही धर्म के प्रति उनकी धारणा भी बदली . उज्जैन का महाकाल हो या काशी का विश्वनाथ मंदिर या दक्षिण के बालाजी या अजमेर के ख्वाजा, अमिताभ ने कंही भी सर झुकाने से गुरेज नहीं किया है . शायद यही वजह रही है कि कल का लाल आँखों वाला अमिताभ आज विनम्रता की प्रतिकृति बन गए है .
चार दिन पहले राम गोपाल वर्मा ने एशियन एज अखबार में लिखे अपने लेख में अमिताभ बच्चन की ढेर सारी खुबिया गिनाते हुए लिखा है कि महानायक का दर्जा उन्हें वैसे ही नहीं मिल गया है. वर्मा विजयवाडा के एक थियेटर का जिक्र करते हुए लिखते है कि उस थियेटर में अमिताभ कि फिल्म ''खुद्दार '' चल रही थी . और हिंदी भाषा से अनजान तेलगु भाषी दर्शक उनकी आँखों से संवाद अदायगी पर तालिया पीट रहे थे . बेहतरीन एक्टर को इससे ज्यादा और क्या चाहिए ?
यह भी उतना ही सच है की जब भी आप अमिताभ की बात किसी राह चलते दर्शक से करते है तो वह उनकी फिल्मों के डायलोग दोहरा कर सुना देता है या उनके किसी फाईट सीन को विस्तार से बताने लगता है . आप अमिताभ को उनकी फिल्मों के गानों से याद नहीं करते न ही भव्य सेट का जिक्र आता है न ही किसी फोरेन लोकेशन को उनका कद बढाने के लिए याद किया जाता है . अमिताभ मात्र अपनी उपस्थिति से एक एक फ्रेम को जीवंत बना देते है . ऐसा मेनेरिजम सिर्फ मर्लिन ब्रांडो के साथ हुआ है .
यह भी उतना ही सच है की जब भी आप अमिताभ की बात किसी राह चलते दर्शक से करते है तो वह उनकी फिल्मों के डायलोग दोहरा कर सुना देता है या उनके किसी फाईट सीन को विस्तार से बताने लगता है . आप अमिताभ को उनकी फिल्मों के गानों से याद नहीं करते न ही भव्य सेट का जिक्र आता है न ही किसी फोरेन लोकेशन को उनका कद बढाने के लिए याद किया जाता है . अमिताभ मात्र अपनी उपस्थिति से एक एक फ्रेम को जीवंत बना देते है . ऐसा मेनेरिजम सिर्फ मर्लिन ब्रांडो के साथ हुआ है .
दस अक्टोबर रेखा का जन्म दिन हुआ करता है और ग्यारह अक्टोबर अमिताभ का . ये दो तारीखों में महज एक दिन का फासला है, परन्तु आज यह प्रेमी जोड़ा एक दुसरे से एक ही शहर में रहते हुए मीलों के फासले पर है . कुछ प्रेम कहानियों का अंत उनकी शुरुआत में ही तय हो जाता है। जंगली बहती नदी सी रेखा और हिमालयीन अमिताभ का मिलन नहीं होना था ,,,यह बरसों पहले तय हो गया था . परन्तु दोनों पर एक दुसरे का प्रभाव सतह के नीचे महसूस किया जाता रहेगा .
बहुत सुंदर लेख।
ReplyDeleteअमिताभ जी को उनके जनमदिन की ढेरों शुभकामनाएं...
वो यूं ही तरक्की के सोपान छूएं....
आपका आभार.......
के बी सी देखते हुए कई बार सोचती हूँ कि अमिताभ अपनी प्रशंसा सुन सुन कर बोर नहीं होते होगें?
ReplyDeleteउन्हें जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई भगवान करे वो और साठ साल जियें और इसी तरह काम करते रहें
उनकी एक प्रशंसक
एक भुला सी दी गई प्रेम कहानी का सामयिक स्मरण किया है आपने.
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