एक मुसाफिर के सफ़र जैसी होती है दुनिया , कोई जल्दी में है कोई देर से है जाने वाला ...... इस समय जगजीत सिंह नीम बेहोंशी और मौत के बीच अटकी साँसों के सहारे दिन निकाल रहे है . मखमली आवाज का यूं चुप हो जाना विडम्बना है , मेरे लिए और उन सभी के लिए जिन्होंने अपने दर्द का अक्स उनकी गजलों में देखा है . होने को तमाम उम्र मरहम लगाने वाली यह आवाज हमारे साथ रहेगी मगर शायद जगजीत उस नीम बेहोंशी से लौट कर वापस नहीं आयेंगे .
कॉलेज के दिनों में पहली बार उनका गाया गीत '' होंठों से छु लो तुम.. मेरा गीत अमर करदो ..'' सुना था और पहली बार अपने दिल को धडकते महसूस किया था . समय के साथ जगजीत गाते रहे और हम उनकी गजलों के केसेट्स सहेजते रहे . लता मंगेशकर के साथ उन्होंने ''सजदा '' जारी किया था . मेरे मान से यह संग्रह उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का सबब था . मेरी कस्बाई मानसिकता के चलते यह धारणा थी कि लता मंगेशकर ने एक गैर फ़िल्मी अल्बम में आवाज देकर जगजीत सिंह की हेसियत को माना है . समय के साथ मेरी इस सोंच में निखार आया और मेने दोनों के विराट व्यक्तिव के बारे में अपनी धारणा बदली . बहरहाल , '' सजदा '' की सभी गजले आज भी बेमिसाल है . खास कर '' हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी , फिरभी तन्हाइयों का शिकार आदमी , बरसों बाद भी हवा में तैरती सी नजर आती है . जीवन दर्शन समझने के लिए या तो ढेर सारे ग्रन्थ पढ़ लिए जाए या जगजीत की कोई गजल सुन ली जाए , एक ही बात है .
बरसों पहले मौन हो चुकी चित्रा सिंह आज जगजीत के सिरहाने बेठ कर उनके लौटने का इन्तजार कर रही है . जगजीत की यह ख़ामोशी एक गजल के बाद दूसरी गजल के शुर्रू होने का अंतराल भी हो सकती है या फिर कभी न भरने वाला शुन्य ......
ईश्वर उन्हे शीघ्र स्वस्थ करे और पुन: अपना जलवा दिखावें! भावपूर्ण प्रस्तुति…आभार!!!
ReplyDeleteek sachchi shraddhanjali hamare aur se:(
ReplyDelete