भारतीय राष्ट्रीयता के केलेंडर में कुछ ख़ास तारीखों को ' सात '(7 ) के अंक के साथ जुड़ने की विशेष आदत रही है .1757 को हुआ प्लासी का युद्ध भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की सांकेतिक शुरुआत मानी जाती है . इसी तरह 1857 का साल साम्राज्यवाद के खिलाफ हिंसक चुनोती के प्रयास के रूप में याद किया जाता है .इतिहास कभी भी निर्धारित रास्तों पर नहीं चलता उसकी अपनी तासीर होती है . अगर ऐसा ही होता तो भारत को आजादी 1957 में मिलना थी परन्तु वह दस बरस पहले1947 में मिल गई . परन्तु शायद इतिहास को 1957 पर भी अपनी छाप छोड़ना थी . इसलिए महबूब खान ने अपनी कालजयी फिल्म ' मदर इण्डिया' इसी सन में प्रदर्शित की. इस फिल्म का देश भक्ति और राष्ट्रीयता से कुछ लेना देना नहीं था . परन्तु इस फिल्म की बात किये बगैर हम हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम इतिहास को अधुरा छोड़ देते है . फिल्म की कहानी एक किसान की पत्नी के इर्द गिर्द बुनी गई है .देश आजाद होने के साथ ही राधा ( महान नर्गिस ) का विवाह होता है . इस तरह उसकी नियति भी युवा भारत देश के साथ जुड़ जाती है . राधा की सास ने गाँव के साहूकार से उसके विवाह के लिए कर्ज लिया था .परन्तु नियति अपना खेल खेलती है और राधा के पति , सास और छोट बेटे की मौत के साथ राधा पर दुखों का पहाड़ टूट पढता है . कर्ज के जाल में नए जीवन की शुरुआत करने वाली राधा अपना खेत तक खो देती है परन्तु अपना निश्चय नहीं खोती और अपने बेटों को बड़ा करती है . एक दिन एक बेटा साहूकार को मार देता है . राधा अपने खुनी बेटे को महज इसलिए जान से मार देती है कि उसकी नजर में किसी कि जान लेना अनेतिक है , ठीक आदर्शों से भरे युवा देश की तरह . राधा नए देश के आदर्शों के प्रति समर्पित है . फिल्म के अंत में वह गाँव में आने वाली नहर का उदघाटन करती है . सब कुछ खो देने के बाद भी सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय, भावना के साथ.
देश भक्ति से औत -प्रोत फिल्मों की शुरुआत का सफ़र शुरू होता है चेतन आनंद की ' हकीकत ' से .1962 में चीन से मिली शिकस्त और पंडित नेहरु के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाले समय में चेतन आनंद 1965 में 'हकीकत ' लेकर आये. यह सही मायने में एक 'युद्ध ' फिल्म थी . धर्मेन्द्र इस फिल्म में अपने जीवन के सर्वोत्तम रोल में नजर आये थे . इस फिल्म के लिए कैफ़ी आजमी के रचे गीत ''कर चले हम फ़िदा जान ओ तन साथियों , अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों , को बजाये बगैर आज भी कोई राष्ट्रीय त्यौहार पूर्ण नहीं होता है . यही समय था जब संघर्ष कर रहे मनोज कुमार को दिशा मिली . भगत सिंह के जीवन पर आधारित 'शहीद ' ने उन्हें उंचाई पर ला बैठाया. महेंद्र कपूर की आवाज में '' मेरा रंग दे बसंती चोला '' सुनकर बच्चे और बड़े आज भी जोश से भर जाते है . यही फिल्म थी जिससे प्रेरणा लेकर चालीस बरस बाद राकेश ओम प्रकाश महरा ने आमिर खान को लेकर ' रंग दे बसंती ' बनाई .
अफ़सोस की बात है गुजिश्ता पेंसठ वर्षों में हमारे फिल्मकार महज पंद्रह सोलह फिल्मे ही देश भक्ति पर बना पाए. जबकि इस विषय पर बनी लगभग सभी फिल्मों ने अच्छी कमाई की है .उल्लेखनीय , सरफ़रोश , लगान , स्वदेस ,कारगिल एल ओ सी , पूरब और पश्चिम ,उपकार ,बोर्डर , ग़दर , क्रान्ति , मंगल पांडे , इत्यादि .
देशभक्ति पर फिल्में अच्छी ही बनी हैं....
ReplyDeletedeshbhakti ki filme hamesha se meri pasand rahi hain .sateek prastuti .aabhar
ReplyDeleteslut walk
निश्चित ही इस विषय पर और अधिक फिल्मों की दरकार है.
ReplyDeleteअच्छे विषय पर जितनी बार फिल्म बना लो .निर्वाह होना चाहिए कथानक का .
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