यह सिर्फ संयोग है . ताजा फिल्म '' जिंदगी न मिलेगी दोबारा '' और चेतन भगत के उपन्यास '' वन नाईट एट कॉल सेंटर'' के क्लाइमेक्स में एक समानता है .'' जिंदगी ..........के पात्र अपने जीवन और तनावों से परेशान है है . उन्हें राह मिलती है , जब वे रोमांचक और खतरनाक खेलों का हिस्सा बनते है . मौत और जीवन के मध्य जब चंद साँसों का फासला रह जाता है तब उन्हें अपने डर छोटे लगने लगते है और जिंदगी जरुरी . इसी पल उनकी सोंच बदलती है और वे वह फैसला करते है जिससे आँख चुरा रहेथे . फिल्म क्लासिक की श्रेणी में नहीं जाती है वरन अच्छा मनोरंजन करती है .
इसी तरह चेतन के उपन्यास'' वन नाईट एट कॉल सेंटर'' के छे पात्र (तीन लड़के और तीन लड़कियां ) अपनी अनिश्चित जिंदगी , और टूटते सपनो से परेशान है . एक रात ये लोग अपने काल सेंटर से चंद घंटों के लिए क्वालिस में घुमने निकलते है और अपने को एक निर्माणाधीन बिल्डिंग के बेसमेंट में फंसा पाते है . मोबाइल फोन का नेटवर्क नहीं मिलता , और न ही कोई चीख पुकार सुनकर बचाने आता है . उसी वक्त एक मोबाइल पर' भगवान्' की कॉल आती है . भगवान् उन्हें उनकी कमियों और अच्छाइयों के बारे में बताते है . हरेक पात्र अपने बारे में बताता है और खुद ही अपनी मदद करने का वचन देता है . मौत के मुंह से निकलने के बाद उनकी सोंच और दिशा बदल जाती है .
चेतन के उपन्यास भी 'साहित्यिक ' श्रेणी के नहीं है .परन्तु उनकी भाषा शेली अवश्य ही लुभाती है . यही कारण है की वे इस समय भारत के पहले ' बेस्ट सेलर ' है .
जेसा मेने शुरुआत में कहा दोनों क्लाइमेक्स का एक सामान होना महज संयोग है . '' जिंदगी .... की पटकथा में जोया अख्तर और रीमा कागती की मेहनत को कम करके नहीं आँका जा सकता है .
इसी तरह चेतन के उपन्यास'' वन नाईट एट कॉल सेंटर'' के छे पात्र (तीन लड़के और तीन लड़कियां ) अपनी अनिश्चित जिंदगी , और टूटते सपनो से परेशान है . एक रात ये लोग अपने काल सेंटर से चंद घंटों के लिए क्वालिस में घुमने निकलते है और अपने को एक निर्माणाधीन बिल्डिंग के बेसमेंट में फंसा पाते है . मोबाइल फोन का नेटवर्क नहीं मिलता , और न ही कोई चीख पुकार सुनकर बचाने आता है . उसी वक्त एक मोबाइल पर' भगवान्' की कॉल आती है . भगवान् उन्हें उनकी कमियों और अच्छाइयों के बारे में बताते है . हरेक पात्र अपने बारे में बताता है और खुद ही अपनी मदद करने का वचन देता है . मौत के मुंह से निकलने के बाद उनकी सोंच और दिशा बदल जाती है .
चेतन के उपन्यास भी 'साहित्यिक ' श्रेणी के नहीं है .परन्तु उनकी भाषा शेली अवश्य ही लुभाती है . यही कारण है की वे इस समय भारत के पहले ' बेस्ट सेलर ' है .
जेसा मेने शुरुआत में कहा दोनों क्लाइमेक्स का एक सामान होना महज संयोग है . '' जिंदगी .... की पटकथा में जोया अख्तर और रीमा कागती की मेहनत को कम करके नहीं आँका जा सकता है .
बढिया है।
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ReplyDeleteरजनीश जी,जिंदगी न मिलेगी...कथानक के क्लाइमेक्स का साम्य चेतन भगत की फाइव प्वाइंट...से मिलना महज संयोग है या कहानी के मामले में फिल्म उद्योग के परम्परागत चौर्य कला का नमूना वे ही जाने.फिर भी आपने अच्छी बात पर ध्यान दिलाया
ReplyDeletesahi hai...:)
ReplyDeleteकिशोर जी ..जैसा मेने शुरुआत में कहा यह महज संयोग है ...''जिंदगी........की टीम , जोया , फरहान .और रीमा कागती फिलहाल फिल्म इंडस्ट्री का ऐसा टेलेंट है जो शायद ही चोरी पर विश्वास करता हो . हो सकता है उनका ध्यान चेतन की बुक पर गया ही नहीं हो ...या उन्होंने उस उपन्यास को पढ़ा ही न हो ....मेरे मान से हमें इसे संयोग ही मानना चाहिए ...दोनों माध्यम हमारा विवेक या यह कहे आत्म-विशवास जगाने की कोशिश कर रहे है ...यह काफी है .
ReplyDeletewaakai...
ReplyDeleteमस्त मूवी है...कल ही देखी.
ReplyDeleteअच्छा फीडबैक है....
ReplyDeleteआपका लेख पढ़ा और दो दिन पूर्व ही यह फिल्म देखी थी। आज जीवन की आपाधापी में किसी के पास समय ही नहीं है। याद करो वो स्कूल और कॉलेज के दिन तो लगता हैं, इन यादों से न लौटा जाए, लेकिन शास्वत सत्य तो यही है कि हम ऐसा चाह कर भी नहीं कर सकते। कारण सभी जानते हैं।
ReplyDeleteफिर भी दिल कहता है कि एक बार तो कुछ कर गुजरना चाहिए वरना ‘ये जिंदगी न मिलेगी दोबारा...’
आपने इसे चेतन भगत से जोड़कर एक नई जानकारी दी है। आपको बधाई।