शेयर बाजार की उथल पुथल में सबसे ज्यादा नुकसान अपने मुकेश सेठ को हुआ है। अरबपतियों की फेहरिस्त में अब वे इक्कीसवे नंबर पर चले गए है। यद्धपि वे आज भी इंडिया में टॉप पर है परंतु अपने अमेरिकी दोस्तों के मुकाबले उनकी हैसियत थोड़ी कमजोर हुई है। बिजनेस साईकल में यह ऊंच नीच चलती रहती है। अनिल भाई को ही देखो ! 2005 में जब दोनों भाई फ़िल्मी अंदाज में बंटवारे पर उतर आये तो बड़े बूढ़ों ( दीपक पारेख , मुरली देवड़ा , रतन टाटा ) को बीच में आना पड़ा ! उस समय अनिल भाई को जितना हिस्सा मिला था उस मान से वे दुनिया में छटे नंबर के अमीर कहलाये थे। कट - टू वर्तमान - आज वे भारत के सबसे बड़े कर्जदाता हो गए है। इस कहानी में एक दिलचस्प बात भी है। दोनों ही भाइयों को अकूत संपति के बाद भी वह जनसमर्थन नहीं मिला जैसा आम बोलचाल में ' टाटा -बिड़ला ' को मिला हुआ है ! किसी को भी ज्यादा खर्च करते हुए या अपने पैसे पर इतराते हुए देखकर लोग कह उठते है - टाटा बिड़ला का सपूत बन रहा है ! मतलब अमीर कोई है तो सिर्फ टाटा - बिड़ला ही है ! मुकेश या अंबानी हो जाना किसी की जुबान पर नहीं आता। एक और सुन्दर उपमा है - धन्ना सेठ ! मुकेश भाई के ऊपर यह भी सूट नहीं करती। शायद उनका व्यक्तित्व उनके अमीर होते हुए भी अमीर नहीं दिखने की दुविधा में उलझा नजर आता है। बहरहाल नो डाउट मुकेश भाई अरबपति थे और रहेंगे भी। फिलहाल जिस हवा में वे पतंग उड़ा रहे है इस समय वह उनके इशारे पर ही बह रही है !! इसलिए टेंशन नी लेने का !
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Tuesday, April 14, 2020
मेरी डायरी का एक पन्ना
समय के साथ बदल जाना समय की भी मजबूरी है ।
मुझे कई लोगों से शिकायत है। कई लोगों को मुझसे शिकायत है। हर कोई मुझसे सहमत नहीं होता। होना भी नहीं चाहिए। में भला कब हर किसी से राजी होता हु। इस विश्वव्यापी आपदा से मुझे फायदा हुआ है लेकिन में परपीड़क ( सैडिस्ट ) नहीं हु। इन इक्कीस दिनों में किताबों की संगत भरपूर मिली है। कई अधपढी किताबे पूरी हो गई है। दो दिन में एक किताब का स्कोर चल रहा है। गर्व करने लायक किताबों का भंडार है मेरे पास । कुछ मित्रों की मदद से इ -बुक्स का काफी जमावड़ा हो गया है। मेरे अमेजन किंडल पर क्लासिक किताबे भरी हुई है। टीवी न्यूज़ देखना बरसों पहले बंद कर चूका हु। हाई पीच पर चीखते समाचार वाचक बहुत इर्रिटेटे करते है। समझ नहीं आता लोग कैसे झेलते है। कभी कभी ऐसा लगता है जैसे कोई मदारी अपना मजमा जमा रहा है। वेब पोर्टल सी एन एन , बीबीसी , अलजज़ीरा , प्रिंट , वायर , क्विंट , स्क्रॉल - न्यूज़ के साथ व्यूज में भी बेहतर है। इंदौर के एक मित्र रोजाना अखबारों के इ एडिशन उपलब्ध करा रहे है। सोशल डिस्टैन्सिंग तोड़ते लोगों को डंडे से दुरुस्त करते पुलिस के वीडियो एकबारगी मनोरंजन कर जाते है। तफरी करने वालो और काम से निकलने वालों के बीच अंतर जानने का पुलिस के पास भी तो यंत्र नहीं है।
इन दिनों फिल्मे भी बहुत देख रहा हु। अमेजन पर टीवी शो और डॉक्यूमेंट्री का खजाना है। यूट्यूब की तो कोई बराबरी कर ही नहीं सकता। पुण्य प्रसून , विनोद दुआ , संजय पुगलिया , ध्रुव राठी , आकाश बनर्जी , अखिलेश भार्गव जैसे लोग समय के साथ तालमेल बैठाने में बेहद मददगार साबित हो रहे है। इतना सब होते हुए भी कुछ लोगों से मिल बैठ बात करने का मन करता है। फोन कॉल और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग बढ़िया है लेकिन प्रत्यक्ष सामने होने का सुख नहीं , उसकी तुलना नहीं की जा सकती !
समय चाहे कितना भी खराब हो उसकी सबसे बड़ी कमजोरी उसका चलायमान होना है। बीत जाने के अलावा उसकी कोई नियति नहीं है। यही बात हमें राहत देती है। मुसीबते इससे पहले भी धरती पर आई थी। आती रहेंगी। बस जरुरत है सावधान , चौकन्ने और विवेकशील रहने की।
मनुष्य कुल मिला कर जीने और परस्पर प्यार करने के लिये ही जन्मा है और कोई भी उससे उसका यह हक नहीं छीन सकता।
( इस लेख का पहला और अंतिम वाक्य मेरा नहीं है। बीच के सारे विचार मेरे अपने है )
Tuesday, April 7, 2020
रघुराम राजन कहिन !
ताली थाली दीपोत्सव सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। अब कठोर यथार्थ पर लौटने का समय है। पूर्व आर बी आई गवर्नर रघुराम राजन ने 14 अप्रैल के बाद आने वाली समस्याओ के बारे में आगाह करते हुए एक विस्तृत ब्लॉग पोस्ट लिखी है। इस ब्लॉग की कुछ महत्वपूर्ण बाते - वे लिखते है कि 2008 -09 का आर्थिक संकट वैश्विक था जिसने हमारी मांग को तगड़ा झटका दिया था। लेकिन उस समय हमारे श्रमिक बेकार नहीं हुए थे , अधिकांश कम्पनियाँ पूर्व में बेहतर करती आ रही थी- उनका व्यवसाय कम हुआ लेकिन वे पटरी से नहीं उतरी , वित्तीय संस्थाए अपनी क्षमता का उपयोग नहीं कर पा रही थी - लेकिन काम कर रही थी ! कुल मिलाकर वैश्विक तुलना के लिहाज से अर्थव्यवस्था साउंड थी। आज जब हम इस महामारी से लड़ रहे है तब आर्थिक परिदृश्य ठीक उलट है !
राजन आगे लिखते है कि अब लॉक डाउन के बाद के प्रभावों से निपटने की योजना बनाने का समय है। उनका सुझाव है कि पी एम ओ के अधिकांश नौकरशाह जो काम की अधिकता से त्रस्त चल रहे है उन्हें कुछ दिनों के लिए आराम दे दिया जाना चाहिए। संपूर्ण विपक्ष में से ऐसे लोगों को एकत्र किया जाना चाहिए जो 2008 -09 का आर्थिक संकट नजदीक से देख चुके है। इसी समय यह भी ध्यान रखना जरुरी है कि गरीब और नान सैलेरी वर्ग के लोग बगैर डायरेक्ट ट्रांसफर के भी अपना जीवन यापन कर सके। क्योंकि सिमित आर्थिक संसाधनों के चलते इस मदद को ज्यादा लम्बे समय तक नहीं चलाया जा सकता है ! इस तथ्य की अवेहलना का परिणाम हम अभी प्रवासी मजदूरों के पलायन में देख चुके है।
थोड़े समय के लिए भारत को रेटिंग कम होने की चिंता छोड़ देना चाहिए। अमेरिका यूरोप अपनी जी डी पी का दस प्रतिशत तक जरुरत मंदों पर खर्च कर रहे है। इससे उनकी रेटिंग पर कोई असर नहीं होता। हम भी कर सकते है - भले ही हमारी रेटिंग कम हो जाए , भले ही निवेशकों का विश्वास डगमगा जाये , लेकिन अपने देश को पटरी पर लाने के लिए हमें ज्यादा खर्च करना ही होगा। यह जानते हुए भी कि इस वर्ष हमारा राजस्व निम्नतम धरातल पर होगा - हमें ऐसे कदम उठाने ही होंगे ! रिज़र्व बैंक ने सिस्टम में पर्याप्त तरलता बनाये रखी है। उसे छोटे और मझोले व्यवसायों को उदारता से पूंजी उपलब्ध कराना होगा।
अपनी बात को समाप्त करते हुए वे कहते है कि संकट में ही भारत में सुधार लागू हुए है। उम्मीद है, यह त्रासदी हमें यह देखने में मदद करेगी कि एक समाज के रूप में हम कितने कमजोर हुए है ,और हमारी राजनीति आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी सुधारों पर ध्यान केंद्रित करेगी , जिनकी हमें सख्त जरुरत है !
राजन आगे लिखते है कि अब लॉक डाउन के बाद के प्रभावों से निपटने की योजना बनाने का समय है। उनका सुझाव है कि पी एम ओ के अधिकांश नौकरशाह जो काम की अधिकता से त्रस्त चल रहे है उन्हें कुछ दिनों के लिए आराम दे दिया जाना चाहिए। संपूर्ण विपक्ष में से ऐसे लोगों को एकत्र किया जाना चाहिए जो 2008 -09 का आर्थिक संकट नजदीक से देख चुके है। इसी समय यह भी ध्यान रखना जरुरी है कि गरीब और नान सैलेरी वर्ग के लोग बगैर डायरेक्ट ट्रांसफर के भी अपना जीवन यापन कर सके। क्योंकि सिमित आर्थिक संसाधनों के चलते इस मदद को ज्यादा लम्बे समय तक नहीं चलाया जा सकता है ! इस तथ्य की अवेहलना का परिणाम हम अभी प्रवासी मजदूरों के पलायन में देख चुके है।
थोड़े समय के लिए भारत को रेटिंग कम होने की चिंता छोड़ देना चाहिए। अमेरिका यूरोप अपनी जी डी पी का दस प्रतिशत तक जरुरत मंदों पर खर्च कर रहे है। इससे उनकी रेटिंग पर कोई असर नहीं होता। हम भी कर सकते है - भले ही हमारी रेटिंग कम हो जाए , भले ही निवेशकों का विश्वास डगमगा जाये , लेकिन अपने देश को पटरी पर लाने के लिए हमें ज्यादा खर्च करना ही होगा। यह जानते हुए भी कि इस वर्ष हमारा राजस्व निम्नतम धरातल पर होगा - हमें ऐसे कदम उठाने ही होंगे ! रिज़र्व बैंक ने सिस्टम में पर्याप्त तरलता बनाये रखी है। उसे छोटे और मझोले व्यवसायों को उदारता से पूंजी उपलब्ध कराना होगा।
अपनी बात को समाप्त करते हुए वे कहते है कि संकट में ही भारत में सुधार लागू हुए है। उम्मीद है, यह त्रासदी हमें यह देखने में मदद करेगी कि एक समाज के रूप में हम कितने कमजोर हुए है ,और हमारी राजनीति आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी सुधारों पर ध्यान केंद्रित करेगी , जिनकी हमें सख्त जरुरत है !
कोरोना की भविष्यवाणी करने वाली फिल्म !
फिल्मों के निर्माण में रचनात्मकता के साथ अर्थशास्त्र का भी सटीक संयोजन होना जरुरी है। किसी भी फिल्म के लिए जरुरी है कि वह किसी विषय को इस तरह प्रस्तुत करे ताकि दर्शक उससे जुड़ाव महसूस कर सके , उसमे दर्शाये कथानक को दर्शक अपने आसपास घटित होता देख सके। फिल्मकार अक्सर ऐसे विषयों का ही चुनाव करते है जिसमे उन्हें लगता है कि वे दर्शक को सिनेमाघर में खिंच लायेंगे और अपना निवेश मय मुनाफे के वसूल लेंगे । कुछ फिल्मकार अतीत के किस्सों और घटनाओ को अपनी फिल्मों की विषय वस्तु बनाने में उत्सुक रहे है तो कुछ इस तरह के कथानक को पसंद करते है जिसमे भविष्य की झलक हो !
स्टीवन एंड्रू सोदेन्बर्ग ऐसे अमेरिकन फिल्मकार रहे है जिन्होंने अपने आसपास घट रही घटनाओ पर कैमरा चलाया है और उसमे भविष्य के संकेतों को भी पिरोया है । उनकी पहली फिल्म ' सेक्स , लाइज एंड वीडियो टेप ' (1989) ऐसी फिल्म थी जिसमे फिल्म इंडस्ट्री के स्याह चेहरे को उजागर किया गया था। काफी बाद में एकता कपूर ने इसमें देशी तड़का मारकर ' लव सेक्स और धोखा (2010) बनाई थी। सोदेन्बर्ग की एक दर्जन से अधिक उल्लेखनीय फिल्मे रही है जिनमे ' ओशेन इलेवन ' श्रंखला की तीनो फिल्मे , फेंज काफ्का ' और ' एरिन ब्रोकोविक ' की बायोपिक जैसी फिल्मे भी शामिल है। अपनी पहली ही फिल्म से 'कैन्स फिल्म फेस्टिवल का '
पाम डी ओर ' एवं बाद में ' ट्रैफिक ' फिल्म के लिए अकादमी पुरूस्कार उनकी प्रतिभा का सही सम्मान करता है।
इस मौजूदा समय में सोदेन्बर्ग की एक एक दशक पुरानी फिल्म को ढूंढ ढूंढ कर देखा जा रहा है। यह फिल्म है ' कान्टेजियन ' ! कोरोना वायरस के फैलाव की भविष्यवाणी करती इस फिल्म का आइडिया उन्हें 2002 से 2004 के मध्य फैले ' सार्स ' वायरस और 2009 में फैली ' फ्लू ' की महामारी से आया था। सोदेन्बर्ग की फिल्मों में अमूमन - व्यक्तिगत पहचान , बदला , नैतिकता और सेक्सुअलिटी केंद्र में रहते है। उनकी फिल्मों की सिनेमोटोग्राफी भी स्मरणीय रही है। 3 सितंबर 2011 को प्रदर्शित कान्टेजियन की स्टार कास्ट भी जबरदस्त है। मैट डेमोन , केट विंसलेट , मारिओं कोटिलार्ड ,जुड लॉ , गायनेथ पेल्ट्रो , लारेन्स फिशबर्न , जेनिफर एहल आदि मुख्य कलाकार है। 106 मिनिट की अवधि वाली यह फिल्म पुरे समय दर्शक को मौत के आसन्न भय और अच्छी भली व्यवस्था के भरभरा कर गिर जाने का सटीक चित्रांकन करती है। इसे भविष्यवाणी ही माना जाना चाहिए कि कोरोना की तरह इस फिल्म में आतंक मचाने वाला ' नोवेल वायरस ' हांगकांग से दुनिया में फैलता है और मनुष्य के साथ अर्थव्यवस्था को भी धराशाही कर देता है। विदित हो कि हांगकांग चीन का ही एक हिस्सा है।
इस फिल्म की शूटिंग हांगकांग के अलावा लंदन , जिनेवा , सैनफ्रांसिस्को , और कैलिफ़ोर्निया में रियल लोकेशन पर हुई है। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इसके फिल्मांकन के लिए कही भी नकली सेट नहीं लगाए गए न ही भीड़ जुटाने के लिए एक्स्ट्रा कलाकारों की मदद ली गई। विश्व स्वास्थ संगठन ( डब्लू एच ओ ) ने इस फिल्म की पटकथा लिखने में रचनात्मक सहयोग प्रदान किया !
कोरोना आपदा के दौर में ' कान्टेजियन ' को इंटरनेट पर अवैध रूप से डाउनलोड कर देखने की रफ़्तार में पांच हजार प्रतिशत का इजाफा हुआ है। यूट्यूब पर इसे तलाशने की कोशिश न करे। कान्टेजियन नाम से बहुत सारे वीडियो है लेकिन वे सब अनुपयोगी है। अमेजन प्राइम पर इस फिल्म को एच डी फॉर्मेट में हिंदी सब टाइटल के साथ देखा जा सकता है। ' कान्टेजियन ' को लेकर बनी उत्सुकता और कोरोना प्रकोप के चलते इस फिल्म के सभी अभिनेताओं ने 27 मार्च को एक वीडियो जारी करते हुए इस महामारी से बचने के लिए क्वारंटाइन , आइसोलेशन , हैंड वाश , नो हैंड शेक जैसे शब्दों को दोहराया है। आज साधारण बोलचाल में प्रयुक्त होने ये शब्द सबसे पहले इसी फिल्म में बोले गए थे !
स्टीवन एंड्रू सोदेन्बर्ग ऐसे अमेरिकन फिल्मकार रहे है जिन्होंने अपने आसपास घट रही घटनाओ पर कैमरा चलाया है और उसमे भविष्य के संकेतों को भी पिरोया है । उनकी पहली फिल्म ' सेक्स , लाइज एंड वीडियो टेप ' (1989) ऐसी फिल्म थी जिसमे फिल्म इंडस्ट्री के स्याह चेहरे को उजागर किया गया था। काफी बाद में एकता कपूर ने इसमें देशी तड़का मारकर ' लव सेक्स और धोखा (2010) बनाई थी। सोदेन्बर्ग की एक दर्जन से अधिक उल्लेखनीय फिल्मे रही है जिनमे ' ओशेन इलेवन ' श्रंखला की तीनो फिल्मे , फेंज काफ्का ' और ' एरिन ब्रोकोविक ' की बायोपिक जैसी फिल्मे भी शामिल है। अपनी पहली ही फिल्म से 'कैन्स फिल्म फेस्टिवल का '
पाम डी ओर ' एवं बाद में ' ट्रैफिक ' फिल्म के लिए अकादमी पुरूस्कार उनकी प्रतिभा का सही सम्मान करता है।
इस मौजूदा समय में सोदेन्बर्ग की एक एक दशक पुरानी फिल्म को ढूंढ ढूंढ कर देखा जा रहा है। यह फिल्म है ' कान्टेजियन ' ! कोरोना वायरस के फैलाव की भविष्यवाणी करती इस फिल्म का आइडिया उन्हें 2002 से 2004 के मध्य फैले ' सार्स ' वायरस और 2009 में फैली ' फ्लू ' की महामारी से आया था। सोदेन्बर्ग की फिल्मों में अमूमन - व्यक्तिगत पहचान , बदला , नैतिकता और सेक्सुअलिटी केंद्र में रहते है। उनकी फिल्मों की सिनेमोटोग्राफी भी स्मरणीय रही है। 3 सितंबर 2011 को प्रदर्शित कान्टेजियन की स्टार कास्ट भी जबरदस्त है। मैट डेमोन , केट विंसलेट , मारिओं कोटिलार्ड ,जुड लॉ , गायनेथ पेल्ट्रो , लारेन्स फिशबर्न , जेनिफर एहल आदि मुख्य कलाकार है। 106 मिनिट की अवधि वाली यह फिल्म पुरे समय दर्शक को मौत के आसन्न भय और अच्छी भली व्यवस्था के भरभरा कर गिर जाने का सटीक चित्रांकन करती है। इसे भविष्यवाणी ही माना जाना चाहिए कि कोरोना की तरह इस फिल्म में आतंक मचाने वाला ' नोवेल वायरस ' हांगकांग से दुनिया में फैलता है और मनुष्य के साथ अर्थव्यवस्था को भी धराशाही कर देता है। विदित हो कि हांगकांग चीन का ही एक हिस्सा है।
इस फिल्म की शूटिंग हांगकांग के अलावा लंदन , जिनेवा , सैनफ्रांसिस्को , और कैलिफ़ोर्निया में रियल लोकेशन पर हुई है। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इसके फिल्मांकन के लिए कही भी नकली सेट नहीं लगाए गए न ही भीड़ जुटाने के लिए एक्स्ट्रा कलाकारों की मदद ली गई। विश्व स्वास्थ संगठन ( डब्लू एच ओ ) ने इस फिल्म की पटकथा लिखने में रचनात्मक सहयोग प्रदान किया !
कोरोना आपदा के दौर में ' कान्टेजियन ' को इंटरनेट पर अवैध रूप से डाउनलोड कर देखने की रफ़्तार में पांच हजार प्रतिशत का इजाफा हुआ है। यूट्यूब पर इसे तलाशने की कोशिश न करे। कान्टेजियन नाम से बहुत सारे वीडियो है लेकिन वे सब अनुपयोगी है। अमेजन प्राइम पर इस फिल्म को एच डी फॉर्मेट में हिंदी सब टाइटल के साथ देखा जा सकता है। ' कान्टेजियन ' को लेकर बनी उत्सुकता और कोरोना प्रकोप के चलते इस फिल्म के सभी अभिनेताओं ने 27 मार्च को एक वीडियो जारी करते हुए इस महामारी से बचने के लिए क्वारंटाइन , आइसोलेशन , हैंड वाश , नो हैंड शेक जैसे शब्दों को दोहराया है। आज साधारण बोलचाल में प्रयुक्त होने ये शब्द सबसे पहले इसी फिल्म में बोले गए थे !
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