पिछले दिनों प्रदर्शित हुई फिल्म ' पीहू ' अपने धमाकेदार कथानक की वजह से दर्शकों के एक बड़े वर्ग को अपनी और आकर्षित करने में सफल हुई। यद्धपि फिल्म में कोई व्यस्क एक्टर नहीं है परन्तु दो वर्ष की नन्ही लड़की मायरा विश्वकर्मा इस फिल्म की वास्तविक स्टार है। ' पीहू ' दरअसल हमारे बिखरते पारिवारिक ताने बाने के खतरनाक परिणामों की झलक भर है। हम समय के जिस दौर से गुजर रहे है उसकी कठोर वास्तविकताओं का यह एक ट्रेलर भर है। इस दौर के नए माता पिताओ में अहम् को लेकर जो गलतफहमियां पनपती है उसके क्या परिणाम हो सकते है फिल्म इस बात को डरावने ढंग से दर्शाती है। माता पिता के बिगड़ते संबंधों का बड़े शहरों में बच्चों पर क्या असर होता और उन्हें किस बात का ध्यान रखना चाहिए जैसे संजीदा मसले पर चेतावनी देने का प्रयास करती है। आमतौर पर भारतीय दर्शक इस तरह की फिल्मों के आदी नहीं है। दो साल की बच्ची एक दिन सुबह जागती है तो पाती है कि घर में कोई नहीं है। उसकी माँ बिस्तर पर लेटी हुई है। नन्ही पीहू समझ नहीं पाती कि उसकी माँ ने आत्महत्या कर ली है। घर का सामान एक बच्चे के लिए कितना ख़तरनाक हो सकता है फिल्म इसे डिटेल में बताती है। वाशिंग पाउडर , फिनाइल बोतल , घर की बालकनी की रेलिंग , पल पल पीहू को एक नए खतरे की तरफ ले जाती है। इस रोमांचक फिल्म में एक ' कल्ट फिल्म ' बनने के सभी तत्व मौजूद है। तीन महीने में चौंसठ घंटे की शूटिंग के बाद सौ मिनिट की फिल्म में बेहद तनाव और धड़कन बड़ा देने वाले दृश्यों को शामिल किया गया है। पीहू को हॉलीवुड कॉमेडी फिल्म ' होम अलोन ' का डरावना रूप भी कहा जा सकता है।
नैशनल अवार्ड विनर डॉक्यूमेंट्री ' कांट टेक धिस शिट एनिमोर ' और ' मिस तनकपुर हाजिर हो ' से पहचान बना चुके विनोद कापरी ने इस फिल्म को लिखने के साथ निर्देशित भी किया है। दो साल की बच्ची से अभिनय कराना बहुत ही चुनौती भरा काम है जिसमे वे एक हद तक सफल रहे है। अनूठे विषय पर फिल्म बनाकर दर्शकों को रोमांचित कर देने वाले फिल्मकारों को सफलता मिलनी ही चाहिए। पैतालीस लाख के बजट में बनी ' पीहू ' बॉक्स ऑफिस पर ढाई करोड़ कमा चुकी है।फिल्म में कही भी हल्का फुल्का माहौल नहीं है। फिल्म देख रहा दर्शक निश्चित रूप से एक पालक भी होता है और अकेली पीहू अगले पल कौनसा दुस्साहस कर बैठेगी सोंचकर ही उसका मन कंपकंपा जाता है। कमजोर और भावुक लोगों के लिए यह फिल्म बिलकुल नहीं है।