Thursday, August 2, 2018

एक अफसाना जिसे बचाना जरुरी है

कभी साहिर ने ताजमहल को इशारा करते हुए  कहा था ' एक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मजाक ! साहिर बहुत हद तक सच लिख रहे थे। उनका उलहाना इस बात को लेकर था कि मुग़ल सम्राट ने अपनी बेगम की याद में इतना भव्य मकबरा बना दिया जिसकी बराबरी दुनिया में कोई दूसरा नहीं कर सकता फिर वह अपनी जीवन संगिनी से कितना ही प्रेम क्यूँ न करता हो। साहिर के ताने के बावजूद आज भी करोडो लोग ताज को पसंद करते है। संभवतः यह दुनिया की इकलौती इमारत है जिसका रिश्ता दिल से है। ताज के अलावा शायद ही कोई  दूसरा स्थापत्य शिल्प होगा जिसे देखकर दिल धड़कता हो। शायद ही कोई दूसरा अजूबा होगा जिसे गीतों , नज्मों , कविताओं , गजलों , शायरी , कहानियों और सिनेमा में एक साथ शामिल किया गया हो। रविंद्रनाथ टैगोर ने इसे ' समय के गाल पर ठहरा आंसू ' कहा तो सतीश गुजराल ने 'संगमरमर में संगीत ' नाम दिया। अमेरिकन उपन्यासकार बयार्ड टेलर ने लिखा है कि भारत में कुछ नहीं होता तो भी अकेला ताज विश्व के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए काफी है। 
पांच हजार साल पुरानी सभ्यता के तमगे से सजे देश में साढ़े तीन सौ साल कुछ लम्हों के बराबर है। मगर इतने कम समय में ही कोई नायब नमूना अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करने लगे तो यह हम सभी के लिए शर्म की बात है। अनियोजित ढंग से फ़ैल रहा आगरा शहर , प्रदुषण उगलते कारखाने और लुप्त होती यमुना नदी ने समय के सीने पर पैर जमाए खड़े ताजमहल की नीवों को हिला दिया है। इसका रंग बदरंग होने लगा है। दीवारों पर दरारे उभरने लगी है। पर्यटकों के छूने से संगमरमर पर झाइंया पड़ने लगी है। कचरे के ढेर से उड़कर आये मच्छरों  के बैठने से जगह जगह हरे चकते उभर आये है।   दुर्भाग्य से हम समय के उस नाजुक दौर से गुजर रहे है जब प्रदुषण और असंतुलित पर्यावरण ने अपने पंजों के निशान ऐतिहासिक विरासतों पर  छोड़ना आरम्भ कर दिये है। हालात की गंभीरता को देश की शीर्ष अदालत की चिंता से भी समझा जा सकता है। ताजमहल की बिगड़ती  सेहत को लेकर सर्वोच्च अदालत ने केंद्र और उतर प्रदेश सरकार को लताड़ लगाईं है। 
इतिहास मोटे तौर पर चरित्रों , घटनाओ और प्रसंगों का विवरण देता है जो किसी देश और समाज के निर्माण या परिवर्तन में महती भूमिका अदा करते है। इतिहास मुग़ल सम्राट शाहजहाँ की तो विस्तार से चर्चा करता है मगर उनकी बेगम का परिचय देने में कंजूस हो जाता है। महज उनचालीस बरस की उम्र में दुनिया से रुखसत हो जाने वाली 'अर्जुमंद बानो ( मुमताज महल उनकी उपाधि थी ) की याद में ताजमहल न बना होता तो शायद उनका जिक्र भी न होता। मुग़लों के जिस सुनहरे दौर में शराब और शबाब का दरिया सतत बह रहा हो वहा किसी नारी के सिर्फ देह का आकर्षण कितने दिनों तक साथ दे सकता था।  
मुमताज इससे भी अधिक कुछ थी जिसकी वजह से शाहजहां ताउम्र उनके प्रेम पाश में बंधे रहे। और यही वजह रही कि  उनकी स्मृति को चिर स्थायी बनाने के लिए ताजमहल का निर्माण किया गया। ताजमहल शाहजहाँ के उदात दाम्पत्य प्रेम का चरम  बिंदु है। 
प्रेम के प्रतिक इस स्मारक को सहेजने की जिम्मेदारी से आँखे नहीं मुंदी जा सकती। इसे यूँ ही खुले आसमान और प्रदूषित वातावरण के बीच अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है। अगर शीर्ष अदालत ने इसके लिए फ़िक्र की है तो यह पुरे देश के लिए फिक्रमंद होने का समय है। सन 1632 में इसके निर्माण से लेकर मौजूदा समय तक इसे बारह पीढ़ियों ने निहारा है। अगली बारह पीढ़िया भी इसे देख पाये ऐसे प्रयास करने ही होंगे। इतिहास की धरोहर को इतिहास होने से बचाना ही होगा। 

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