Friday, July 13, 2018

खामोश फिल्म मेकर : विधु विनोद चोपड़ा

' संजू ' की घनघोर सफलता ने फिल्म के निर्माता विधु विनोद चोपड़ा के ताज में सफलता का एक पंख और सजा  दिया है। विधु न केवल आज  भारत के सफलतम प्रोड्यूसर है वरन बेहतरीन निर्देशकों में भी अपना एक अलग मुकाम रखते है। किसी भी फिल्मकार के लिए खुद को साबित करना और सफलता का क्रम बनाये रखना आसान नहीं होता क्योंकि उसे खुद को तराशने के इतने अवसर नहीं मिलते जितने किसी एक्टर को मिलते है। ऐसे ही चुनिंदा अवसरों को यादगार मील के पत्थरों में बदल देना उसे ' जीनियस ' की श्रेणी में ला खड़ा करता है। श्रीनगर में जन्मे और अंग्रेजी का शून्य ज्ञान लेकर फिल्म निर्माण सिखने पुणे इंस्टिट्यूट पहुंचे विधु ने ऋत्विक घटक से सिर्फ इस बात के लिए थप्पड़ खाया था कि वे तब तक शेक्सपीअर के बारे में कुछ नहीं जानते थे। उनकी विलक्षणता का पहला प्रमाण तब मिला जब पुणे के अंतिम वर्ष में प्रोजेक्ट के लिए बनाई उनकी  डॉक्यूमेंट्री ' एन  एनकाउंटर  विथ फेसेस ' ऑस्कर के लिए नामांकित हो गई। अमेरिकन राइटर , डायरेक्टर , एक्टर क्वेंटिन टैरेंटीनो से आप उम्मीद नहीं कर सकते कि वे कोई बॉलिवुड फिल्म भारत आकर बना लेंगे परन्तु विधु विनोद से ऐसी आशा की जा सकती है। फिल्म माध्यम को लेकर जुनूनी हद तक समर्पित इस फिल्मकार ने 2015 में हॉलीवुड जाकर सौ फीसदी  अमेरिकन फिल्म ' ब्रोकन  होर्सेस ' बना दी थी। 
सफलता के शिखर पर खड़े विधु का शुरूआती सफर  इतना आसान नहीं रहा है लेकिन उनकी जीवटता कइयों के लिए प्रेरणा बन सकती है। सन पिच्चासी का बरस हिंदी सिनेमा  में  कई नए चेहरों को स्थापित कर रहा था।  ' बेताब ' से शुरुआत करने वाले सनी देओल के पैर ' अर्जुन ' ने मजबूती से जमा दिए थे। अनिल कपूर '  वो सात दिन ' जैसी  यादगार भूमिका के बाद ' साहेब ' और ' मेरी जंग ' से नई ऊंचाइयो को छूने जा रहे थे। मिथुन चक्रवर्ती ' डिस्को डांसर ' से मिली सफलता को ' प्यार झुकता नहीं ' और  ' ग़ुलामी ' तक दोहरा रहे थे। जमे जकड़े अमिताभ ( मर्द , गिरफ्तार ) राजेशखन्ना ( आखिर क्यों , बेवफाई ) आदि  की फिल्मे सिनेमाघरों पर ' हॉउसफुल ' की तख्तियां टांग रही थी। ऐसे में एक अनजान से निर्माता निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा  की  फिल्म ' खामोश ' का पोस्टर बम्बई के रीगल सिनेमा पर लगा नजर आया। यह फिल्म एक बरस पहले बन चुकी थी परन्तु इसे कोई खरीदने को तैयार नहीं था। वजह यह उस दौर में आ रही कहानियों से ठीक उलट थी। रीगल के मालिक को टिकिट बिक्री का चालीस प्रतिशत देने के आश्वासन पर फिल्म रिलीज करने के लिए मनाया गया।   निर्माता खुद इतने तंगहाल थे कि वे इस फिल्म के  सिर्फ एक प्रिंट का खर्चा भी ब मुश्किल उठा पाए थे। विधु , की पत्नी रेनू सलूजा , सहायक बिनोद प्रधान , दोस्त और एक्टर सुधीर मिश्रा दीवारों पर ' खामोश ' के  पोस्टर चिपका रहे थे। रिलीज पर होने वाला धूम धड़ाका भी संभव नहीं था क्योंकि कोई भी नामी गिरामी हस्ती फिल्म देखने नहीं पहुंची थी। रात के शो में कही से घूमते घामते अनिल कपूर रीगल पहुँच गए। अनिल का यूँ इस तरह  आना अगले दिन के अखबारों की खबर बन गया। शायद ' खामोश ' को इतनी ही पब्लिसिटी की जरुरत थी। फिल्म चली और कई हफ्तों तक चली। फिल्म में कोई स्टार नहीं था सिर्फ एक्टर थे। आज के सारे चर्चित नाम इस फिल्म में थे। पंकज कपूर , नसीरुद्दीन शाह , शबाना आजमी , सोनी राजदान , सुषमा सेठ , अजित वाच्छानी , सदाशिव अमरापुरकर  ये लोग तब तक इतने जाने पहचाने नहीं थे।  सिर्फ फिल्म के नायक अमोल पालेकर और शबाना आजमी को ही दर्शक पहले भी देख चुके थे। फिल्म की यूएसपी थी सधी हुई  स्क्रिप्ट , बेहतरीन कैमरा वर्क और लाजवाब एडिटिंग। एक तरह से यह फिल्म  अपने  समय से आगे की फिल्म थी। निर्देशन इतना सधा हुआ था कि क्लाइमेक्स तक दर्शक सस्पेंस में ही उलझा रहता है। फिल्म के शुरुआत में आने वाले क्रेडिट में सिर्फ फिल्म के तकनीशियनों के नाम थे।   सिर्फ आठ लाख  में बनी इस फिल्म ने अपनी लागत तो नहीं निकाली परन्तु अपने अनूठेपन की वजह से आज भी याद की जाती है। अपनी पहली फिल्म से लेकर आज तक अलग अलग सब्जेक्ट पर  साफ़ सुथरी फिल्मे बनाकर एक मुकाम बना चुके विधु ने अपने  संघर्ष के दिनों से बहुत कुछ सीखा है। कई  सितारों  के लिए उनका स्पर्श पारस साबित हुआ है। अपनी चमक खो चुके संजय दत्त के लिए ' मुन्ना भाई ' सीरीज ,  संगीत में लगभग ख़ारिज कर दिए गए आर डी बर्मन के लिए  1942 ए लव स्टोरी , आमिर खान के लिए नई ऊंचाइयां ( 3 इडियट्स , पीके ) लगभग लड़खड़ाते रनवीर के कैरियर के  लिए हालिया ' संजू ' टर्निंग पॉइंट साबित हुई है। कोई आश्चर्य नहीं कि इतनी खूबियों की वजह से  उनका बेनर  ' विनोद चोपड़ा फिल्म्स ' देश के चार बड़े प्रोडक्शन हाउस में गिना जाता है। 
rajneesh jain 

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