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जिस व्यक्ति ने कोपोला से प्रश्न किया उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि पहली रीडिंग में कोपोला ने ' पैरामाउंट ' के प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया था कि इस दुरूह सब्जेक्ट पर फिल्म नहीं बन सकती। बाद में उन्होंने इस फिल्म का निर्देशन करना स्वीकार किया और इतनी पैशन से बनाया कि काल्पनिक कथानक होने के बाद भी दुनिया भर के पर्यटक इटली के ' तुरीन ' कस्बे में डॉन कोरलियोनि का तथाकथित ' मकान ' देखने जरूर जाते है।
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सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। न ही सफलता का कोई फिक्स रोडमैप होता है। बगैर किसी ऊँची महत्वाकांक्षा के अपना ' सर्वश्रेष्ठ ' देने वालों को अक्सर यह नसीब हुई है। पहली सफलता को संयोग मानना फिल्मकारों के जूनून का अपमान होगा।
फिल्मों की सफलता में कथानक और उसके प्रस्तुति करण का विशेष महत्व होता है। दूसरी पायदान पर एक्टर होता है जो उस कहानी को अपनी पहचान देता है। हो सकता है आज मर्लिन ब्रांडो से बेहतर एक्टर मिल जाए परन्तु ब्रांडो जैसा नहीं हो सकता। जैसे अमिताभ की फिल्मों के कितने ही 'रीमेक ' बन जाए परन्तु उनकी इंटेनसिटी के पास भी नहीं पहुंचा जा सकता। शाहरुख़ खान ' डॉन ' और ऋतिक रोशन ' अग्निपथ ' में इस कड़वे सच को महसूस कर चुके है।
गॉडफादर ही क्या , किसी भी क्लासिक को दुबारा बनाना संभव नही है ।
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