ट्रिबेका फिल्म फेस्टिवल ( न्यूयॉर्क ) के एक कार्यक्रम में फ्रांसिस फोर्ड कोपोला से पूछा गया कि क्या ' गॉडफादर ' दुबारा बनाना संभव है ? मारिओ पुजो द्वारा रचित उपन्यास पर कोपोला ने इसी नाम से 1972 में फिल्म बनाई थी। इस कृति को अपराध जगत की महाभारत का दर्जा प्राप्त है। यह एक इतालियन किशोर शरणार्थी की अमेरिका के अपराध जगत का सिरमौर बनने की कहानी है। यद्धपि केंद्रीय पात्र डॉन कोरलियोनि अपराधी है परन्तु वह और उसके तीन बेटे पारिवारिक रिश्तों और संबंधों को अहमियत देते है। यह इस अपराध कथा का उजला पक्ष है। उल्लेखनीय तथ्य है कि ' गॉडफादर ' फिल्म और उपन्यास दोनों को ही सारी दुनिया में सराहा गया है। इस कथानक में ऐसे चुंबकीय पात्र और परिस्तिथिया है जिन्होंने दुनिया भर के फिल्मकारों को प्रेरणा दी , और सफलता दिलाई। मरहूम फ़िरोज़ खान एवं रामगोपाल वर्मा की फिल्मों में गॉडफादर के प्रभाव को महसूस किया जा सकता है। इस बात को इन दोनों ने खुले दिल से स्वीकारा भी है।
जिस व्यक्ति ने कोपोला से प्रश्न किया उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि पहली रीडिंग में कोपोला ने ' पैरामाउंट ' के प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया था कि इस दुरूह सब्जेक्ट पर फिल्म नहीं बन सकती। बाद में उन्होंने इस फिल्म का निर्देशन करना स्वीकार किया और इतनी पैशन से बनाया कि काल्पनिक कथानक होने के बाद भी दुनिया भर के पर्यटक इटली के ' तुरीन ' कस्बे में डॉन कोरलियोनि का तथाकथित ' मकान ' देखने जरूर जाते है।
आमतौर पर नए सब्जेक्ट को फिल्माने में सफलता की संभावना बहुत क्षीण होती है। डॉयरेक्टर का जूनून और समर्पण ही फिल्म को क्लासिक , कालजयी बनाता है। बड़ा बजट या नामी स्टार कास्ट कभी सफलता की गारंटी नहीं होता। अगर ऐसा होता तो ' शोले ' के बाद रमेश सिप्पी की ' शान ' फ्लॉप नहीं होती। जबकि उसके नायक भी अमिताभ ही थे। ठीक इसी तरह के आसिफ ' मुगले आजम ' के बाद ' लव एंड गॉड ' में खुद को दोहरा नहीं पाए। ' पाकिजा ' के बाद कमाल अमरोही ' रजिया सुलतान ' में अपनी जीवन भर की कमाई डूबा बैठे , इस तथ्य के बावजूद कि हेमा मालिनी उस समय शीर्ष पर थी और दर्शक धरम - हेमा की जोड़ी को सर आँखों पर बैठाये हुए थे।
सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। न ही सफलता का कोई फिक्स रोडमैप होता है। बगैर किसी ऊँची महत्वाकांक्षा के अपना ' सर्वश्रेष्ठ ' देने वालों को अक्सर यह नसीब हुई है। पहली सफलता को संयोग मानना फिल्मकारों के जूनून का अपमान होगा।
फिल्मों की सफलता में कथानक और उसके प्रस्तुति करण का विशेष महत्व होता है। दूसरी पायदान पर एक्टर होता है जो उस कहानी को अपनी पहचान देता है। हो सकता है आज मर्लिन ब्रांडो से बेहतर एक्टर मिल जाए परन्तु ब्रांडो जैसा नहीं हो सकता। जैसे अमिताभ की फिल्मों के कितने ही 'रीमेक ' बन जाए परन्तु उनकी इंटेनसिटी के पास भी नहीं पहुंचा जा सकता। शाहरुख़ खान ' डॉन ' और ऋतिक रोशन ' अग्निपथ ' में इस कड़वे सच को महसूस कर चुके है।
गॉडफादर ही क्या , किसी भी क्लासिक को दुबारा बनाना संभव नही है ।
No comments:
Post a Comment