टीवी दर्शकों के लिए एक बहुत ही कॉमन शब्द है ' काउच पोटैटो ' . इस शब्द का हिंदी मतलब है निहायत ही आलसी व्यक्ति जो टीवी देखने का इतना शौकीन है कि खाना भी टीवी के सामने बैठकर ही खाता है। मौजूदा दौर में यह शब्द इतना लोकप्रिय हुआ है एवं आम टीवी दर्शकों के लिए भी उपयोग किया जाने लगा है। हाल ही में आये एक सर्वेक्षण से स्पस्ट हुआ है कि दुनिया भर में टेलीविज़न दर्शको की संख्या में जबरदस्त गिरावट आई है। अकेले भारत की बात होती तो हम आसानी से दोयम दर्जे के कार्यक्रमों को इसकी वजह मान सकते थे। अनवरत चलने वाले संयुक्त परिवार के आपसी मन मुटाव , दकियानूसी फैशनेबल महिलाओ के षड़यंत्र दर्शाते तथाकथित सामजिक सीरियल और बेहूदगी की सीमा को लांघते कॉमेडी शोज ने गंभीर दर्शकों को टीवी से काफी पहले ही दूर कर दिया था। परन्तु जब गिरावट का रुझान वैश्विक हो तो निश्चय ही बड़ा कारण होगा।
सर्वे में दर्शको के खिसक जाने की बड़ी वजह स्मार्ट फ़ोन बना है। पिछले चार पांच वर्षों में दुनिया भर में थ्री जी और फोर जी के मोबाइल का चलन तेजी से बड़ा है। जिसने मोबाइल पर टीवी देखने की सुविधा उपलब्ध करा दी। इस उपलब्धि ने विज्ञापन के लिए भी नया प्लेटफार्म बना दिया। चुनांचे दर्शकों को शिफ्ट होना ही था और वे तेजी से हो भी रहे है। देश में ' रिलायंस जियो ' के धमाकेदार आगमन ने पलायन को तेजी से बढ़ाया। महज तीन माह में दस करोड़ ग्राहक का आंकड़ा इसके पहले किसी कंपनी ने नहीं छुआ।
मोबाइल पर ऑन डिमांड वीडियो उपलब्ध कराने की शुरुआत सबसे पहले ' नेटफ्लिक्स ' ने अमेरिका से की। 1997 में बनी यह कंपनी आज दुनिया भर में ऑन डिमांड मूवी , टीवी शोज ,वीडियो उपलब्ध कराती है। इ कॉमर्स पोर्टल अमेज़न ने 2006 में शुरुआत की परन्तु मात्र दस वर्षों में इसके ग्राहकों की संख्या 8 करोड़ हो गई। इसकी लोकप्रियता की वजह इसका न्यूनतम शुल्क है। महज पांच सौ रूपये वार्षिक शुल्क पर अनगिनत फिल्मों और टीवी शोज का लुत्फ़ लिया जा सकता है। इन दोनों ही कंपनियों ने बड़े भारतीय स्टूडियो के साथ मिलकर मोबाइल पर फिल्मे रिलीज़ करने की भी योजना बनाई है।
भारत के 90 करोड़ मोबाइल धारी किसी भी कंपनी के लिए एक बड़ी संभावना है। भारत में टीवी दर्शकों की संख्या यूरोप की आबादी से ज्यादा है।
विकासवाद के सिद्धांत की विशेषता है कि हर नयी परिष्कृत तकनीक पुरानी को चलन से बाहर कर देती है। रेडियो को टेलीविज़न ने लगभग बाहर कर दिया था। उसे ' फ्रेक्वेंसी मॉडुलेशन ' ( ऍफ़ एम् ) का सहारा लेकर अपना अस्तित्व बचाना पड़ा। लैंडलाइन टेलीफोन के साथ भी यही हो रहा है। टेलीविज़न ने वह दौर भी देखा है जब CNN दुनिया भर में एक हजार प्रतिशत की दर से बढ़ रहा था और भारत में दूरदर्शन के प्रसारण टावर प्रतिदिन स्थापित हो रहे थे।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व हास्य दिवस - अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteविचारों से सहमत. औसत से बुरा कंटेंट युवाओं को टीवी से दूर कर रहा है. युवाओं को ध्यान में रख कर बनाया गया कंटेंट अभी नेट में ही अवेलेबल है इसलिए वो उसी को तरजीह देते हैं.
ReplyDelete