वेद प्रकाश शर्मा का निधन हो गया। अस्सी के दशक में युवा हुई पीढ़ी इस नाम से भलीभांति परिचित होगी। इंटरनेट से पोषित पीढ़ी के बारे में मै दावे से कुछ नहीं कह सकता। यह पीढ़ी बाल साहित्य ( पराग , नंदन ,इंद्रजाल कॉमिक्स , ) पढ़ कर युवा हुई थी। इन लोगों को पढ़ने की भूख लग चुकी थी जिसे शांत करने की जवाबदारी उस दौर में कस्बे नगरों में मौजूद किराये पर उपन्यास उपलब्ध कराने वाली लाइब्रेरीयो के जिम्मे थी। जिसे वे बखूबी निभ्रा रही थी। टेलीविज़न नाम का अजूबा अभी कुछ वर्षों की दुरी पर था और टॉकीज़ में लगने वाली फिल्मे महीनो नहीं बदलती थी। उस दौर के युवा जासूसी उपन्यास पढ़ते थे।
कर्नल रंजीत, सुरेंद्र मोहन पाठक ,जेम्स हेडली चेस ,के जासूसी उपन्यासों की फेहरिस्त में वेद प्रकाश शर्मा का नाम भी था। होने को गुलशन नंदा भी थे परंतु उनके उपन्यासों का केंद्रीय भाव ' प्रेम ' होता था। गुलशन नंदा काफी ऊंचाई हासिल कर चुके थे और फिल्मों के लिए भी लिखने लगे थे। राजेश खन्ना के लिए उन्होंने कई फिल्मे लिखी थी। राजेश खन्ना का मतलब होता था ' भावुक -रुमानियत - आदर्शवादी प्रेम। ऐसे ही गुलशन नंदा के नावेल थे।
जासूसी उपन्यासों में शीर्ष पर थे कर्नल रंजीत उसके बाद सुरेंद्र मोहन पाठक और वेद प्रकाश शर्मा को पढ़ा जाता था। यह समय दोनों के लिए संघर्ष का था क्योंकि ' 'इब्ने सफी की जासूसी दुनिया ' कही ज्यादा डिमांड में थी। सुरेंद्र मोहन पाठक जेम्स हेडली चेस के उपन्यासों का हिंदी अनुवाद कर पहचान बना रहे थे और वेद प्रकाश शर्मा अपनी ' जगत सीरीज ' से पैर जमा रहे थे। बहरहाल एक -एक कर वेद प्रकाश शर्मा ने 176 उपन्यासों का संसार रचा। 1986 में उनके उपन्यास ' वर्दी वाला गुंडा ' की पहले ही दिन 15 लाख प्रतियां बिकी थी जो एक रेकॉर्ड है। उनके समस्त उपन्यासों की अब तक आठ करोड़ प्रतियां बिक चुकी है। वेद प्रकाश शर्मा ने भी फिल्मों के लिये लिखा है। अक्षय कुमार की खिलाड़ी नाम से आयी सभी फिल्मे वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यासों का ही विस्तार है।
मेरे ' पढ़ाकू ' सफर में वेद प्रकाश शर्मा भी पड़ाव बनकर आये जो जासूसी कहानियों की ललक में शरलॉक होम्स और अगाथा क्रिस्टी के बाद आज भी जारी है। उनका अवसान मेरे जैसे लाखों पाठकों के लिए व्यक्तिगत क्षति है। मेरा यह लेख उनके लिए विनम्र आदरांजलि है।
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