अगर आप समय के साथ नहीं चलते तो समय आपको उठकर इतिहास के हवाले कर देता है। फिर कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप जीवित है या नहीं। साठ के दशक की धड़कन ' साधना ' इस बात का जीवंत उदाहरण है। साधना अपनी छवि से इस कदर प्रेम करने लगी थी कि बढ़ती उम्र की आहट मात्र से वे अपने शानदार कॅरियर को अलविदा कहकर घर की चार दिवारी में सिमट गई। सफ़ेद बालों और झुर्रियों ने उन्हें इस कदर भयभीत किया कि वे गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर हो गई। आज वे प्रख्यात गायिका आशा भोंसले की किरायेदार बनकर तन्हा जिंदगी जी रही है। उनके पडोसी भी नहीं जानते है कि उनके बगल में कोई भूतपूर्व शिखर सितारा निवास कर रही है।
भारत के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना आत्म मुग्धता के ऐतिहासिक उदाहरण रहेहै। राजेश खन्ना के बारे में कहा जाता था कि वे अपने संघर्ष के दिनों में भी स्पोर्ट्स कार से काम मांगने निर्माताओ के घर जाया करते थे। जब वे सफल हुए तो उन्होंने सफलता को स्थायी लिया था। सफलता के नशे और अपनी छवि के इस कदर मुरीद हुए कि उन्होंने अपनी प्रेमिका , पत्नी और दोस्तों तक को डट कर बेइज्जत किया। नतीजन अपनी मृत्यु तक वे अपने बंगले में अकेले रहते हुए नैराश्य भोगते रहे। उस अतीत में जीते रहे जो बरसों पहले गुजर गया था।
आत्म मुघ्दता मनुष्य का नैसर्गिक स्वभाव है। सभी में इसका कुछ अंश हमेशा मौजूद रहता है। परन्तु समय के साथ बदलते रहना व्यवहारिक सोंच दर्शाता है। अगर आपको समय की दीवार पर लिखी इबारत पढ़ना नहीं आती है तो समझ लीजिये आप भी आत्म मुघ्ध होते जा रहे है।
इस बिमारी से ग्रसित लोगों को दक्षिण के सुपर स्टार रजनीकांत से सीखना चाहिए। रजनी ने कभी अपने फ़िल्मी किरदार को कभी वास्तविक जीवन में हावी नहीं होने दिया। गंजे सिर , सांवला चेहरा , पारम्परिक दक्षिण भारतीय परिधान में अपने प्रशंशको के सामने आने में गुरेज नहीं किया। यही वजह है कि उनके दर्शक उन्हें भगवान की तरह पूजते है।
भारत के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना आत्म मुग्धता के ऐतिहासिक उदाहरण रहेहै। राजेश खन्ना के बारे में कहा जाता था कि वे अपने संघर्ष के दिनों में भी स्पोर्ट्स कार से काम मांगने निर्माताओ के घर जाया करते थे। जब वे सफल हुए तो उन्होंने सफलता को स्थायी लिया था। सफलता के नशे और अपनी छवि के इस कदर मुरीद हुए कि उन्होंने अपनी प्रेमिका , पत्नी और दोस्तों तक को डट कर बेइज्जत किया। नतीजन अपनी मृत्यु तक वे अपने बंगले में अकेले रहते हुए नैराश्य भोगते रहे। उस अतीत में जीते रहे जो बरसों पहले गुजर गया था।
आत्म मुघ्दता मनुष्य का नैसर्गिक स्वभाव है। सभी में इसका कुछ अंश हमेशा मौजूद रहता है। परन्तु समय के साथ बदलते रहना व्यवहारिक सोंच दर्शाता है। अगर आपको समय की दीवार पर लिखी इबारत पढ़ना नहीं आती है तो समझ लीजिये आप भी आत्म मुघ्ध होते जा रहे है।
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