Saturday, October 4, 2014

Don't disturb we are sleeping. क्षमा करना हम सो रहे है


'' कौन कहता है आसमान में  छेद  नहीं होता
एक पत्थर तो पुरजोर उछालो यारों''

दशहरा अभी अभी गुजरा है। देश ने सांकेतिक रूप से बुराई पर विजय प्राप्त करली है। लेकिन बुराई फिर भी रहेगी। ठीक वैसे ही जैसे प्रधान मंत्री की सफाई के बाद वाल्मीकि कॉलोनी में कचरा फिर से जमा हो गया है। सोशल साइट्स पर सक्रिय फौज ने अपनी अपनी  रस्म अदायगी के फोटो डाल कर एक गंभीर प्रयास को सतही बनाने में कसर नहीं छोड़ी है। फिर भी यह तो मानना पड़ेगा कि किसी ने तो पत्थर उछलने की कोशिश की।
 अक्सर हम लोग सुनते रहते है कि हमारी सांस्कृति और प्राचीन विरासत खतरे में है।  हमें यह भी नहीं पता होता कि  आखिर यह क्या बला  है। सड़क से लेकर संसद तक सभी जगह इस बात की चर्चा होती रहती है। ट्वीटर से लेकर फेसबुक तक लोग अपनी राय उंडेल कर आगे बढ़  जाते है। परन्तु आदर्श प्रस्तुत करने कोई आगे नहीं आता। सरकारी बंगले पर नाजायज कब्ज़ा हो या लव जिहाद के नाम पर कानून से खिलवाड़ करने का , सभी के पास अपने रेडीमेड तर्क है। खबर है कि जम्मू की बाढ़ ने एक हजार साल पुरानी दुर्लभ कृतियों और दस्तावेजों को नष्ट कर दिया।  किसी को इस मसले पर बात करते सुना ? दिल्ली से लेकर कश्मीर तक एक भी मंत्री ने चिंता जाहिर की ? ताजमहल के किनारे उथली होती यमुना नदी पर कितनी सरकारों ने ध्यान दिया ? भला हो सुप्रीम कोर्ट का जिसने मायावती को एन  वक्त पर रोक दिया अन्यथा आज ताज के पार्श्व में बेहतरीन शॉपिंग मॉल खड़ा होता।
खबर है की शरलॉक होम्स पर 1916 में बनी फिल्म को फ्रांस में खोज लिया गया है।  इस मूक फिल्म को संरक्षित करने का बीड़ा सैनफ्रांसिस्को के एक कला प्रेमी ने उठाया है।  हमारी पहली बोलती फिल्म '' आलम आरा '' का हम सिर्फ पोस्टर बचा पाये है।  इसका प्रिंट कहाँ  है ? किसी को भी नहीं मालुम। हमने अंग्रेजों से रहन सहन सीखा अब हमें उनसे अपनी विरासत को सहेजना भी सीखना होगा ( अधिक जानने के लिए गूगल करे How Europe preserved it's culture and heritage )
खबर यह भी है कि देश में पूजा स्थलों की संख्या पिछले एक दशक में चमत्कारिक रूप से बढ़ गई है परन्तु संग्राहलयों और पुस्तकालयों( Museums and Libraries ) की संख्या में कोई इजाफा नहीं हुआ है।  न कोई अफ़सोस ,न कोई चिंता , न कोई बहस , न ट्वीटर पर युद्ध , न फेसबुक पर कोई आंदोलन , संस्कृति के पुजारी सभी जगह नींद निकाल रहे है।
है कोई जो दुष्यंत कुमार की उपरोक्त पंक्तियों को सार्थक करे ?



image courtesy google 

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