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कुछ वर्षों से इस दुरूह विषय पर हिंदी फिल्मकारों का ध्यान जाने लगा है। हिंदी फिल्मो की नयी पीढ़ी के निर्देशकों में इम्तियाज अली ने इस विषय पर ख़ासा जोर दिया है। उनके पात्र हमेशा यात्रा पर रहते है और अंत में खुद को पाते है। ' जब वी मेट ' रॉकस्टार ' लव आजकल ' हाईवे , उनके इस यात्रा जूनून को सही रेखांकित करती है।
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यात्रा सिर्फ व्यक्ति को ही नहीं बदलती , कभी कभी पुरे देश को ही बदल डालती है। लेटिन अमरीकी क्रांतिकारी चे गुवेरा ( Che Guevara ) को भला कौन नहीं जानता। मेडिकल पढाई ख़त्म करने के बाद चे अपने एक मित्र के साथ मोटर साइकिल पर भ्रमण के लिए निकलते है और लातिन अमरीकी किसानों की दशा देख द्रवित हो उठते है। 14000 किलोमीटर का यह सफर चे को बदल देता है और वे अपना डॉक्टर बनने का सपना छोड़ क्रांतिकारी बन जाते है। उनके इस सफर के संस्मरणों पर आधारित फिल्म ' मोटर साइकिल डायरीज़ ' 2004 में रिलीज हुई थी। स्पेनिश भाषा में बनी इस फिल्म ने दुनिया भर के दर्शकों को प्रभावित किया था। इस फिल्म से प्रभावित हो कर आमिर खान ने 2011 में अपनी पत्नी किरण के निर्देशन में ' धोबी घाट ऐ मुंबई डायरी ' का निर्माण किया था। आमिर पर इस फिल्म का कितना प्रभाव था यह इस बात से पता चलता है कि ' उन्होंने मोटर साइकिल डायरीज़ ' के संगीत निर्देशक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गुस्ताव अल्फ्रेडो सेंताओलाला' को अपनी फिल्म धोबी घाट के लिए अनुबंधित किया था।
गांधी का महात्मा बनने का सफर भी उनकी देशभर में की गई यात्राओ का परिणाम है। दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के बाद अगर बापू भारत को समझने के लिए यात्रा नहीं करते तो शायद आज देश की किस्मत कुछ और होती। '' गांधी '' फिल्म के लिए स्वयं रिचर्ड एटनबरो ने बीस साल तक भारत की अनेक यात्राए की और गांधी को एक बार फिर सम्पूर्ण दुनिया से मिलाया।
photo courtesy google images
रजनीश जी, इंटरवल वाकई दिलचस्प है. हमेशा की तरह आपकी सामग्री सूझ बूझ के साथ परोसी गई है. ''वे सभी जो नहीं भटकते है गुम जाते है ''.
ReplyDeleteदिलचस्प और प्रेरणादायी.