Monday, June 9, 2014

ठगों की मदद करते फ़िल्मी सितारे


फिल्म नगरी मुंबई की चुनचुनाती रौशनी के अपने स्याह अँधेरे है। यंहा आने वालों का दिल खोल कर स्वागत किया जाता  है और जाने वालों के लिए बिदाई संगीत भी नहीं बजाया जाता , जितनी जल्दी हो सके उन्हें विस्मृत कर दिया जाता  है। अस्त होते सितारे की त्रासदी जानने की किसे फुर्सत है।  सफलता में यंहा भीड़ होती है और कॅरियर की शाम यादों की जुगाली।
अस्त होते सितारों को जब समझ आता  है कि उनका समय गुजर गया है तब वे रौशनी की छोटी गलियों में दौड़ लगाने  लगते है। इन   गलियों  को विज्ञापन कहा जाता है।  टीवी चैनलों के विस्फोट के बाद इन्हे इतना काम तो मिलने लगा है कि कैसे भी रोजी रोटी कमा  सके। फिर इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि ये विज्ञापन किस स्तर के है। ये विज्ञापन घर में समृद्धि लाने का भरोसा दिलाने वाले  श्री यंत्र का  भी हो सकता या बरसों से जान निकाल रहे घुटने के दर्द का भी। इन विज्ञापनों में तात्कालीन मंत्री स्मृति ईरानी से लेकर गोविंदा  , जेकी श्रॉफ , आलोक नाथ , मनीषा कोइराला ,जरीना वहाब , दीपक पाराशर , गाहे बगाहे नजर आते रहे है।  स्मृति ईरानी जैसी किस्मत सभी की नहीं रही है। एक अनजान से प्रोडक्ट के साथ अपना नाम जोड़ना इन्हे एक बार तो मोटी रकम दिला  देता है परन्तु इनके बहकावे में प्रोडक्ट खरीद बैठा उपभोक्ता इन्हे पानी पी पीकर कोसत्ता  रहता है इसकी ये परवाह नहीं करते या जानबूझ कर अनजान बने रहते है।
वैसे तो 30 सेकंड की एक विज्ञापन फिल्म किस्मत बदल देती है परन्तु ये सितारे जिन विज्ञापनों में काम करते है वह अक्सर रात बारह बजे बाद प्रादेशिक और राष्ट्रीय चैनलों पर देर तक दिखायी जाती है। देर रात तक जागने वाले दर्शक इनके शिकार होते है। एक जमाने में फिल्म निर्माता सुभाष घई की खोज कही जाने वाली महिमा चौधरी ने महज दो लाख रूपये के लिए मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर शुजालपुर में आकर एक चिट फण्ड कंपनी को प्रमोट किया था।
हाल ही में,  सभी महानगरों में अपनी शाखा होने का दावा करने वाली एक लैबोरेटरी ने देश के सभी बड़े अखबारों में एक विज्ञापन जारी किया है. जिसमे उन्होंने गुजरे जमाने की सनसनी दीपक पाराशर ( निकाह ) और ज़रीना वहाब (चितचोर ) को अपनी बीस वर्ष पुरानी अवस्था में प्रस्तुत किया है। सीधा  सा मतलब है कंपनी को कोई नया चेहरा नहीं मिला लिहाजा पुरानी पीढ़ी को पुरानी शक्ल दिखा कर ही आकर्षित किया जाए।
यंहा बेरोजगार और उम्रदराज अभिनेताओं के ताजा अवसरों पर कोई आक्षेप नहीं है। प्रश्न यह है की ये लोग ठगी में मदद करने के परोक्ष माध्यम  नहीं बनते जा रहे है ?


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