इधर बहुत दिनों से कोई हिंदी फिल्म नहीं देखी। इंटरनेट पर यूँ ही भटकते हुए एक खजाना हाथ लगा है। ये गर्मियां इस लिहाज से भी यादगार रहेगी कि इन दिनों इतने सारे अमेरिकन टीवी सीरियल देख डाले है की अब उन्हें याद रखना मुश्किल हो रहा है। अपने पिछले ब्लॉग में मेने कॉमेडी नाईट विथ कपिल का आलोचनात्मक विश्लेषण किया था। कुछ मित्रों को वह बेहद ही नागवार गुजरा। मेरे ताजे अनुभव के बाद में दावे से कह सकता हूँ कि भारतीय टेलीविज़न को अभी भी परिपक्व होने में लम्बा रास्ता तय करना है। इसी माह अमेरिका में कॉमेडी ड्रामा '' टू एंड अ हाफ मैन '' के ग्यारवें सीजन का अंत हुआ है। एक ही लोकेशन पर कैमरे का एंगल बदले बगैर तात्कालिक परिस्थियों से हास्य उत्पन्न करना टेढ़ी खीर है। कॉमेडी नाईट में भी कपिल कुछ ऐसा ही करने का प्रयास करते है। परन्तु हास्य इतना ' लाउड ' हो जाता है कि गले नहीं उतरता।फूहड़ता हावी हो जाती है।
बहरहाल ! '' टू एंड अ हाफ मैन '' अपने प्रस्तुति करण में लाजवाब है। इस ' सिटकॉम ' का विषय बोल्ड है। परन्तु घटियापन नजर नहीं आता ।
इन दिनों स्टार वर्ल्ड पर इस धारावाहिक का दसवां सीजन दिखाया जा रहा है।
सिटकॉम शैली के धारावाहिको की कल्पना भारत में अभी करना थोड़ी जल्दबाजी होगी। परिस्थितियों से उत्पन्न हास्य को बगैर दोहराव के अगले 25 /30 मिनिट तक जारी रखना फिल्म बनाने से ज्यादा जटिल है।
जब भी हम भारतीय टेलीविजन कार्यक्रमों की चर्चा करते है तो दूरदर्शन पर 1984 में प्रसारित शरद जोशी का लिखा '' यह जो है जिंदगी '' के अलावा दूसरा नाम नजर नहीं आता। इस लोकप्रिय धारावाहिक में शफी इनामदार , सतीश शाह और राकेश बेदी के साथ स्वरुप संपत ने शानदार अभिनय किया था।
स्वरुप संपत लोकप्रिय चरित्र अभिनेता और हाल ही में सांसद बने परेश रावल की पत्नी है।
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