Tuesday, June 14, 2011

हिंदी फिल्मो में विदेशी !!!!!!

जो लोग इतिहास पढते है वे जानते है की भारत ने सदियों से विदेशी शासको और आक्रमण कारियों को आकर्षित किया है . भारत के सोने और ज्ञान की तलाश में बरसों से विदेशियों का आना जारी रहा है .मौजूदा दौर निश्चित तौर पर ऐसा नहीं है परन्तु हमारी फिल्म इंडस्ट्री में यह ट्रेंड साफ़ दिखाई देता है . यह भी सच है कि गुणवत्ता के मान से हमारी दो -चार फिल्मे और दो -चार फिल्मकार ही ओस्कर के लेवल तक जा सकते है . कांस फिल्मो के प्रतियोगी खंड तक हमारी फिल्मे पहुच नहीं पाती .(ऐश्वर्या रॉय अवश्य ही बीला-नागा दस साल से भारत का नाम काँस में रोशन कर रही है - वजह उनका एक अंतर्राष्ट्रीय कास्मेटिक ब्रांड के साथ करार होना है ) परन्तु बावजूद इन सबके , विदेशी या विदेशी मूल के भारतीयों को बोलीवूड जबरदस्त लुभाता है . अब एक्टर अपने देश की नागरिकता छोड़े बगेर वर्किंग वीसा के माध्यम से फिल्मो में प्रवेश कर रहे है . इस समय शीर्ष की अभिनेत्रियों में शुमार केटरीना कैफ ब्रिटेन निवासी है . पिछले दस सालों में उन्होंने अपनी अलग पहचान और जगह बना ली है . अब वे अपनी बहनों को लांच करने की तेयारी कर रही है . हांलाकि उनकी हिंदी आज भी माशा -अल्लाह है . परन्तु इससे उनकी सफलता पर कोई असर नहीं पड़ा है .
पड़ोस में रहने वाली लड़की जैसी दीप्ति नवल की पैदाइश यु तो पंजाब की है . परन्तु पदाई के लिए अमरीका जाकर बसने और नागरिकता हासिल करने के बाद जब उन्होंने भारत के बारे में सोंचा तो सबसे पहले उनके जेहन में हिंदी फिल्मे ही आई . कुछ समय के लिए प्रकाश झा से विवाह करने वाली दीप्ति आज 75 फिल्म पुरानी हो चुकी है . सार्थक फिल्मो के लिए याद रखी जाने वाली दीप्ती निर्देशक भी बन गई है . उनकी फिल्म दो आने की धुप चार आने की बारिश प्रदर्शन के लिए तैयार है .
भले ही पाकिस्तान की सरकार और अवाम भारत को पानी पी पी कर कोसे परन्तु वहां के कलाकार भारतीय फिल्मो से जुड़ने का कोई मौका नहीं गंवाते है . अदनान सामी , राहत फ़तेह अली खान , जेबा बख्तियार , वीना मालिक , मीरा , सलमा आगा , साफ़ तौर पर मानते है कि हिंदी फिल्मे शोहरत और दौलत का प्रवेश द्वार है . मुंबई में ठाकरे सल्तनत की नाक के नीचे रहने के बावजूद इन्हें भारतीय फिल्मो का वातावरण उत्साहजनक और प्रेरणा दायक लगता है .

जर्मन बाला क्लाडिया सिसला (बिग बॉस 3 ) चेकोस्लाविया की याना गुप्ता , नोर्वे की निगार खान , और एक समय सैफ अली की बेगम बनते -बनते बची इटली की रोजा केट्लिना, कोई शसक्त पहचान नहीं बना पाई . परन्तु दाल रोटी लायक काम इन्हें आज भी मिल रहा है .(निगार खान को वीसा ख़त्म होने पर नोर्वे भेजा जा चूका है )सिर्फ एक फिल्म में जलवा बिखेर कर अपने मुल्क वापस लौट चुकी अभिनेत्रियों की तादात भी कम नहीं है ,एलिस पेटन-रंग दे बसंती , कायली मिनोग -ब्लू , बारबरा मोरी -काईट , उल्लेखनीय है .
श्रीलंकाई सुंदरी जेक्लिन फर्नांडिस को लम्बी रेस की दावेदार माना जा सकता है . वेसे तो उनके खाते में कोई बड़ी हिट नहीं है परन्तु हाल ही में उन्होंने मर्डर 2हासिल कर भट्ट केम्प में प्रवेश हासिल किया है.
वर्किंग -वीसा पर भारत आने वाले एक्टर एक और रोचक ट्रेंड बना रहे है . फिल्म इंडस्ट्री में इन लोगो की सफलता में महिला कलाकारों का प्रतिशत पुरुषों के बनिस्बत बहुत ज्यादा है . पुरुषों में , कुछ दिन पूर्व दिवंगत हुए बोब क्रिस्टो और नफासत से हिंदी बोलने वाले टॉम अल्टर को छोड़ कर तीसरा नाम याद नहीं आता है .


8 comments:

  1. बहुत अच्छी रचना, आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा,

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  2. आपका लेख शानदार है, बहुत सी जानकारियों इसमें समाहित हैं. और आपकी यह बात भी सही है कि भारत ने अगल-अलग समय पर सबको अपनी ओर आकर्षित किया है.

    एक अच्‍छे लेख के लिए आप बधाई के पात्र हैं.

    एम सिंह mydunali.blogspot.com

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  3. बहुत बढिया आलेख्।

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  4. टोम का जन्म भारत में ही हुआ था अतः उसे विदेशी मानना गलत है.

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  6. रजनीश जी, इतनी सरलता से कालावधी में बांधकर आपने जो सटीक चित्रण हमारी फिल्म इंडस्ट्री के नए-पुराने कलाकारों के बारे में किया हैं, इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं...

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