वे दिन गए जब सिर्फ अच्छे काम करने से ही नाम होता था . गत दशक में मजबूत होते मिडिया ने जब चाहा तिल का ताड़ बनाया है . जिसे चाहा उसे सर पर बिठा दिया , ब- शर्ते उसमे खबर पैदा करने का माद्दा भर होना चाहिए . इस शर्त को पूरा करने वाला तिनका भी नेशनल लेवल की हस्ती बन जाता है . भारतीय टीम की ''फायनल'' जीत पर निर्वस्त्र होने का एलान करने वाली अनजान सी मोडल पूनम पांडे रातो -रात मशहूर हो गई थी. हांलाकि बाद में वह अपनी बात से पलट गई , परन्तु अपनी प्रसिद्धि की एवज में उन्हें''खतरों के खिलाड़ी '' में मोटी रकम दे कर अनुबंधित कर लिया गया .
अन्तर्रष्ट्रीय मुद्रा कोष के डायरेक्टर न्यूयोर्क की एम्पायेर नामक जिस बिल्डिंग के अपार्टमेन्ट में नजरबन्द है वह इस समय न्यूयोर्क की सबसे ज्यादा देखी जाने वाली जगह में शुमार हो गई है .ग्राउंड जीरो ( जंहा पहले ट्विन टॉवर थे) देखने जाने वाले पर्यटक अब बलात्कारी स्ट्रास काहन का घर देखने के लिए आरहे है . रोजाना पांच हजार से ज्यादा लोग इस बिल्डिंग को देखकर जाते है परन्तु किसी को भी काहन नजर नहीं आते . पर्यटक उनकी चोकसी में रखे गार्ड के साथ ही फोटो खिंचवा कर खुश हो रहे है . डोमिनिक स्ट्रास काहन को दस दिन पहले कोई नहीं जानता था. परन्तु अब वे न्यूयोर्क के टूर गाइड और ट्रेवल एजेंसियों की अतिरिक्त आय का जरिया बन गए है . फ़्रांस के राष्ट्रपति पद की दौड़ में सबसे आगे चल रहे शख्स का यु इस कदर बर्बाद हो जाना फिल्म की कहानी सा लगता है . सच है, अफ़साने कभी कभी हकीकत में उतर आते है .
वास्तविक घटनाओ पर आधारित फिल्मो को हमेशा हाथों हाथ लिया गया है . जेम्स केमरून की 'टाइटेनिक 'हो या ओलिवर स्टोन की ''जे ऍफ़ के ''( जॉन ऍफ़ केनेडी के जीवन पर आधारित ) या हमारे यहाँ की 'नो वन किल्ड जेसिका ' . प्रयोग धर्मी और बंधी बंधाई लिक से अलग हट कर काम करने वाले फिल्मकारों को बॉक्स ऑफिस पुरुस्कृत करता रहा है .
आतंक का पर्याय रहे ओसामा के खात्मे के बाद इस विषय पर फिल्म की घोषणा बिलकुल तय थी . 2010 में अपनी फिल्म ''हर्ट लाकर '' के लिए( बेस्ट डायरेक्टर का ) ओस्कर जीत चुकी केथरीन बिगेलो सन 2008 से इस विषय पर काम कर रही थी .
पत्रकार से स्क्रीन रायटर बने मार्क बोएल और केथरीन बिगेलो इराक के बम निष्क्रिय दस्ते पर फिल्म 'हर्ट लोंकर' बनाकर अपनी शेली और काबलियत का परचम फहरा चुके है . उम्मीद की जानी चाहिए की तोरा बोरा की पहाडियों से अबोताबाद तक का ओसामा का सफ़र इमानदारी से देखने को मिलेगा . कोलंबिया पिक्चर द्वारा फिल्म के वितरण के अधिकार अभी से खरीद लिए जाने से इस बात की तो तस्सली है की 2012में यह फिल्म अवश्य देखने को मिलेगी .
अन्तर्रष्ट्रीय मुद्रा कोष के डायरेक्टर न्यूयोर्क की एम्पायेर नामक जिस बिल्डिंग के अपार्टमेन्ट में नजरबन्द है वह इस समय न्यूयोर्क की सबसे ज्यादा देखी जाने वाली जगह में शुमार हो गई है .ग्राउंड जीरो ( जंहा पहले ट्विन टॉवर थे) देखने जाने वाले पर्यटक अब बलात्कारी स्ट्रास काहन का घर देखने के लिए आरहे है . रोजाना पांच हजार से ज्यादा लोग इस बिल्डिंग को देखकर जाते है परन्तु किसी को भी काहन नजर नहीं आते . पर्यटक उनकी चोकसी में रखे गार्ड के साथ ही फोटो खिंचवा कर खुश हो रहे है . डोमिनिक स्ट्रास काहन को दस दिन पहले कोई नहीं जानता था. परन्तु अब वे न्यूयोर्क के टूर गाइड और ट्रेवल एजेंसियों की अतिरिक्त आय का जरिया बन गए है . फ़्रांस के राष्ट्रपति पद की दौड़ में सबसे आगे चल रहे शख्स का यु इस कदर बर्बाद हो जाना फिल्म की कहानी सा लगता है . सच है, अफ़साने कभी कभी हकीकत में उतर आते है .
वास्तविक घटनाओ पर आधारित फिल्मो को हमेशा हाथों हाथ लिया गया है . जेम्स केमरून की 'टाइटेनिक 'हो या ओलिवर स्टोन की ''जे ऍफ़ के ''( जॉन ऍफ़ केनेडी के जीवन पर आधारित ) या हमारे यहाँ की 'नो वन किल्ड जेसिका ' . प्रयोग धर्मी और बंधी बंधाई लिक से अलग हट कर काम करने वाले फिल्मकारों को बॉक्स ऑफिस पुरुस्कृत करता रहा है .
आतंक का पर्याय रहे ओसामा के खात्मे के बाद इस विषय पर फिल्म की घोषणा बिलकुल तय थी . 2010 में अपनी फिल्म ''हर्ट लाकर '' के लिए( बेस्ट डायरेक्टर का ) ओस्कर जीत चुकी केथरीन बिगेलो सन 2008 से इस विषय पर काम कर रही थी .
पत्रकार से स्क्रीन रायटर बने मार्क बोएल और केथरीन बिगेलो इराक के बम निष्क्रिय दस्ते पर फिल्म 'हर्ट लोंकर' बनाकर अपनी शेली और काबलियत का परचम फहरा चुके है . उम्मीद की जानी चाहिए की तोरा बोरा की पहाडियों से अबोताबाद तक का ओसामा का सफ़र इमानदारी से देखने को मिलेगा . कोलंबिया पिक्चर द्वारा फिल्म के वितरण के अधिकार अभी से खरीद लिए जाने से इस बात की तो तस्सली है की 2012में यह फिल्म अवश्य देखने को मिलेगी .
अच्छी बात है, मौका मिला तो फिल्म भी देखेंगे.
ReplyDeleteaaj jo bikta hai vahi banta hai aur aaj ye naam hi bik raha hai to film vale iska fayda uthane se kaise chook sakte hain.
ReplyDeletebadnam bhi hue to nam to huaa-bilkul sach baat hai .jab koi Poonam pandey par film banaye tab bhi jaroor soochna den .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट! ये फिल्म देखने की कोशिश करुँगी!
ReplyDeleteरजनीश भाई। आपके ब्लाग के पहले पैरागाफ और आग की बातचीत में कोई संगति नजर नहीं आ रही। वैसे फिल्म पर टिप्पणी और उसके औचित्य पर बाद में बात करूंगा।
ReplyDeleteआपकी इच्चा पूर्ण हो!
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