Thursday, March 19, 2020

तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन अनजाना !


बॉलीवुड फिल्मों में दर्शाये प्रेम का विस्तार गली मोहल्ले के युवाओ या रेस्तरां के सुनसान कोने में बैठे जोड़े पर भलीभांति प्रतिबिंबित होते देखे जा सकते है। यद्धपि वे कुछ गलत नहीं कर रहे होते। मस्तिष्क में चल रही हलचल एड्रेनिल रसायन से प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है जिसका परिणाम अक्सर विपरीत सेक्स के आकर्षण पर जाकर ख़त्म होता है। भाषाई शब्दों में हम इस घटना को प्यार होना कहते है !
मनोवैज्ञानिक एल्ड्रिन रिच ने लिखा है ' प्रेम एक सम्मानीय संबंध है जिसमे दो लोग अधिकार पूर्वक प्रेम शब्द का उपयोग करते है। प्रेम दरअसल एक प्रक्रिया है जो बहुत ही कोमल , थोड़ी अधिकार ,थोड़ी भय ग्रस्त होते हुए उस सत्य से दोनों प्रेमियों का परिचय कराती है जिसमे वे होशपूर्वक एक दूसरे को एक नहीं अनेको  बार याद दिलाते है कि वे उससे कितना प्रेम करते है। इस प्रक्रिया में वे रोमांच के साथ एक दूसरे को खो देने की भयग्रंथि से भी ग्रसित रहते है। अक्सर कोई भी प्रेम में पड़ते समय एक कल्पना का सहारा लेता है कि वह अनजान बाहरी व्यक्ति उसके अंदर के खालीपन को भर देगा ! यधपि उसकी इस स्वनिर्मित आश्वस्ति के पीछे कोई ठोस आधार नहीं होता। यह उसका ही बनाया हुआ भ्रम होता। यह तब तक चलता है जब तक उस आगंतुक का वास्तविक जीवन में प्रवेश नहीं हो जाता। मनोवैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि अधिकांश प्रेम कहानिया हताशा की कहानियां होती। इस अवधारणा के समर्थन में तर्क देते हुए वे कहते है कि  जब आप प्रेम में पड़ते है तो अवचेतन में आप स्वीकार लेते है कि आप अब तक हताश थे ! आप किसी के इंतजार में थे , आपके जीवन में  किसी चीज की कमी थी। जो अब अचानक से पूर्ण  हो गई है। प्रेम दरअसल आपके खालीपन की गहराई से आपका साक्षात्कार करा देता है।
            प्रेम हो जाने के बाद उसकी नियति तय होने की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। अमूमन दो ही विकल्प होते है जहाँ प्रेम पहुँचता है। एक , या तो जोड़े हमेशा के लिए बिना शर्त  सुखद अनुभवों को गढ़ते हुए जीवन को निखार लेते है।  दो , या तो  प्रेम चूक जाता है या फिर चयनकर्ता उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता और प्रेम काफूर हो जाता है। मोटे  तौर पर देखे तो प्रेमियों में उम्र का अंतर , समाज के रोड़े , भिन्न परिवेश , विचारों में मतभिन्नता , आर्थिक हालात इसके बिखरने की मूल वजह माना जाता है। यधपि इस तथ्य को कोई ध्यान नहीं देता कि प्रेम का न होना ही इस वियोग की मूल वजह है। शुरुआत में दैहिकता  , रूपसौंदर्य , लोकप्रियता ,बुद्धिमानी , वाकपटुता , संपन्नता या ऐसा ही कोई अन्य प्रभावी कारण रूमानी आकर्षण बनकर इस तरह मन मस्तिष्क पर छा जाता है जिसे संजीदा लोग भी
प्रेम समझने की भूल कर बैठते है। फिर एक निश्चित समय पर उस प्रभावी कारक की कलई मंद होने की आवश्यक प्रक्रिया आरंभ हो जाती है और वह तथाकथित प्रेम धीमे धीमे रिस जाता है। कभी किसी एक का तो कभी एक साथ दोनों ही का !
यहाँ यह भी विचारणीय है कि जो लोग अतीत में  प्रेम की मिसाल बन चुके है उन जैसा हो जाने की कामना करना भी प्रेम के संविधान में  निषेध माना गया है। प्रेम के आरंभ में किसी प्रयोजन का होना- प्रेम न होना ही माना जाएगा। कोई भी प्रयोजन फिर वह भौतिक हो चाहे मानसिक एक समय के बाद हासिल हो ही जाता है। फिर प्रेम करने की गुंजाइश भी उसके साथ ही ख़त्म हो जाती है। लैला मजनू हो जाना , शिरी फरहाद हो जाना या अमृता इमरोज हो जाना किसी तपस्या से कम नहीं है। यह सार्वभौम सत्य गहरे उतारना जरुरी है।
दस बारह वर्ष पूर्व पटना के उम्रदराज प्रोफेसर और उनकी शिष्या के प्रेम प्रसंग को लोग आज तक भूले नहीं है। उनके इस संबंध और  प्रोफेसर की पत्नी द्वारा शिष्या की सरेआम पिटाई को देश के एक प्रतिष्ठित न्यूज़ चैनल ने इस प्रमुखता से सनसनीखेज बना दिया था कि गुरु - शिष्या की जोड़ी शाम होने से पहले सेलेब्रिटी हो गई थी। टीवी चैनल ने ही प्रोफेसर को ' लवगुरु ' की उपाधि से नवाज दिया जो उनके साथ अब तक चिपकी हुई है। प्रोफेसर की नौकरी गई और आर्थिक हालात बदतर होने के बाद अब खबर है कि यह जोड़ा अलग हो चूका है। शिष्या वेस्ट इंडीज़ के किसी मानसिक अस्पताल में अपने अतीत की दुस्साहसिकता पर प्रायश्चित कर रही है। गुजरते समय और धुंधलाती प्रसिद्धि के साथ गुरु शिष्या के तथाकथित प्रेम की परते भी उधड़ गई !
            प्रेम सिर्फ प्रेम होता है जो हर हाल में साथ खड़े होकर अपना संपूर्ण न्योछावर इस शर्त पर करता है कि उसकी( प्रेमी की ) निजता पर कोई आंच नहीं आती। किसी उद्देश्य के लिए किया हुआ प्रेम कभी प्रेम हो ही नहीं सकता। न ही उसके होने का ढिंढोरा पीटने की आवश्यकता होती है। प्रेमियों के लिए बिना वैचारिकता , बिना संवेदनशीलता और बिना विवेक के अनदेखे रास्तों पर चल पड़ना प्रायः दुखद ही रहा है।
बुद्ध , प्लेटो , बर्टेंड रसेल ,  सात्र ,सिमोन द बुवा जैसे कई शताब्दियों और पीढ़ियों पर अपने प्रभाव छोड़ने वाले विचारको ने रोमांटिक प्रेम के  आधुनिक आदर्शो  को कैसे आकार दिया और कैसे इसकी मौलिक खामियों को आदर्श के अनुरूप दुरुस्त करने का मार्ग सुझाया है - की समझ  हरेक काल में प्रासंगिक है। कम से कम प्रेम के रास्ते पर चल पड़े और चलने का मन बना रहे लोगों के लिए तो बेहद जरुरी है !  

Monday, March 16, 2020

कोरोना के सामने बेबस जेम्स बांड !

कोरोना का आतंक धीमे धीमे दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। दुनिया के प्रमुख स्टॉक मार्केट अनिश्चित भविष्य की आशंका में लगातार लड़खड़ा रहे है। भारत में ही एक दिन में निवेशकों के सात लाख करोड़ रूपये स्वाह हो चुके है। चीन में जहाँ से इस वायरस ने अपना मौत का सफर आरंभ किया है , अर्थव्यवस्था डगमगा गई है। अमेरिका के बाद सर्वाधिक सिनेमा हाल वाले इस देश में आधे सिनेमा हाल ( तकरीबन बीस हजार ) सुरक्षात्मक कारणों से बंद कर दिए गए है। तठस्थ मीडिया संस्थान बीबीसी का मानना है कि इस शुरूआती हड़कंप से ही चाइना बॉक्स ऑफिस को पांच अरब डॉलर का नुकसान हो चूका है।
 सिने प्रेमियों के लिए दूसरी बुरी खबर ब्रिटेन से आई है।  जेम्स बांड सीरीज की पच्चीसवी फिल्म ' नो टाइम टू डाई ' का रॉयल अल्बर्ट हॉल लंदन में होने वाला 31 मार्च का  वर्ल्ड प्रीमियर नवंवर तक के लिए टाल दिया गया है। यह फिल्म डेनियल क्रैग की बतौर जेम्स बांड आखरी फिल्म है।  इसके बाद कोई नया अभिनेता जेम्स के रूप में सामने आएगा। 3 अप्रैल को यह फिल्म पूरी दुनिया में प्रदर्शित होने वाली थी परंतु कोरोना के आतंक के चलते फ़िलहाल इसे सात  माह के लिए टाल दिया गया है।  गौरतलब है कि फ़िलहाल ब्रिटिश सरकार ने किसी भी तरह के  सार्वजनिक आयोजन पर कोई रोक नहीं लगाईं है।  फिल्म की रिलीज़ को आगे बढ़ाने का निर्णय निर्माता कंपनी ने अपने विवेक से लिया है। यधपि फ्रांस सरकार ने ऐसे किसी भी आयोजन पर रोक लगा दी है जहाँ पांच हजार लोगों के इकट्ठे होने की संभावना हो सकती है।  स्विट्ज़रलैंड ने इस सीमा को एक हजार पर सीमित कर दिया है। बांड प्रेमियों को इस फिल्म का बेसब्री से इंतजार था।  बांड श्रंखला की आखरी फिल्म 'स्पेक्टर  ' 2015 में आई थी जिसने वैश्विक बॉक्स ऑफिस पर भारतीय मुद्रा में  सत्तरअरब का व्यवसाय किया था। महज सौ करोड़ के कलेक्शन पर इतरा जाने वाले बॉलीवुड के लिए यह एक ऐसा आंकड़ा  है जिसे छूने की वे कल्पना भी  नहीं कर सकते ! ' नो टाइम टू डाई ' की रिलीज़ का आगे बढ़ना साधारण घटना नहीं मानी जा सकती। 250 मिलियन डॉलर के भीमकाय  बजट वाली  यह फिल्म अन्य स्टूडियोज को भी बाध्य करेगी कि अनिश्चितता और भय के माहौल में वे अपनी फिल्मों को प्रदर्शित करने का  निर्णय सोंच विचार कर ले ! इस फिल्म के ऑफिशियल  ट्रेलर को अकेले यू ट्यूब पर ही ढेड़ करोड़ लोग देख चुके है वही इसके टाइटल ट्रेक को पचास लाख से ज्यादा लोग सुन  चुके है। इस टाइटल ट्रेक को गाने वाली गायिका बिली एलीश महज उन्नीस वर्ष की है।   भारतीय दर्शकों के लिए डेनियल क्रैग की फीस जान लेना भी जरुरी है। 2016 में उन्हें जब यह फिल्म ऑफर हुई थी तब निर्माता कंपनी ने उन्हें एक करोड़ डॉलर की पेशकश की थी परंतु बाद में उसे बढ़ाकर ढेड़ करोड़ डॉलर किया गया ! डेनियल क्रैग की बतौर जेम्स बांड यह पांचवी फिल्म है।
जेम्स बांड श्रंखला की फिल्मे बनाने का सर्वाधिकार इयोन प्रोडक्शन के पास है। 2016 में जब इस फिल्म की परिकल्पना की गई थी तब सबसे पहले डेनी बोएल ( स्लम डॉग मिलेनियर ) को निर्देशन का दायित्व सौंपा गया था। परंतु निर्माता कंपनी से उनकी पटरी नहीं बैठी और उन्होंने फिल्म छोड़ दी। कुछ समय के लिए क्रिस्टोफर नोलन का नाम भी चला अंततः कार्ल जोजी फुकुनगा ने निर्देशन की कमान संभाली। फुकुनगा पहले अमेरिकन है जिन्होंने बांड सीरीज की किसी फिल्म को निर्देशित किया है। इसके पहले यह गौरव सिर्फ ब्रिटिश डायरेक्टर को ही हासिल था।
 हवा में तैरती मौत का भय न सिर्फ फिल्मों के प्रदर्शन पर असर डाल रहा है बल्कि उनके दूसरे महत्वपूर्ण कामकाज पर भी असर कर रहा है। पिछले हफ्ते सोनी पिक्चर एंटरटेनमेंट ने अपने लंदन पेरिस और पोलैंड के ऑफिस बंद  कर दिए।  डिज्नी इस हफ्ते अपनी वीडियो स्ट्रीमिंग सर्विस की ब्रिटैन में शुभारंभ पर एक भव्य आयोजन करने जा रहा था , जिसे निरस्त कर दिया गया है। कोरोना के आतंक के चलते ' नो टाइम टू डाई ' के निर्माता को रिलीज़ डेट नवंबर तक धकेलना महंगा पड़ा है। इस फिल्म की पब्लिसिटी और प्रमोशन के लिए अब तक 30 मिलियन डॉलर खर्च किये जा चुके है जो फिलवक्त निरर्थक हो गए है।

दिस इस नॉट अ पोलिटिकल पोस्ट

शेयर बाजार की उथल पुथल में सबसे ज्यादा नुकसान अपने  मुकेश सेठ को हुआ है। अरबपतियों की फेहरिस्त में अब वे इक्कीसवे नंबर पर चले गए है। यद्ध...