कुछ सौन्दर्य की देवियां ऐसी होती है जिनकी सुंदरता गुजरते समय के साथ और बढ़ती जाती है। सुंदरता का जिक्र होते ही सबसे पहले जो नाम जेहन में आता है वह सौम्य मधुबाला और शालीन स्मिता पाटिल का ही आता है। हालांकि हरेक सिने प्रशंसक के अपने अलग पैमाने होते है जिसके अनुसार वे अपनी पसंदीदा नायिकाओ को क्रम देते रहते है। यधपि ये दोनों ही अभिनेत्रियां अरसा पहले इस दुनिया से अलविदा कह चुकी है परन्तु पहले सेलुलॉइड और अब डिजिटल स्वरुप में अंकित होकर ये अमर हो गई है। सुंदरता की आइकोनिक छवियों के चलते इनकी फिल्मे देखते वक्त दर्शक एकबारगी तो इनके सौन्दर्य से अभिभूत हुए बगैर नहीं रहता।
नब्बे के दशक में अपनी शुरूआती असफल फिल्मों के बाद ' तेज़ाब ' से लाइम लाइट में आकर माधुरी दीक्षित ने अपना अलग ही मुकाम बनाना आरंभ कर दिया था। ऐसा भी नहीं है कि उन्हें एकदम खुला मैदान मिल गया था। उस दौर में चुलबुली जूही चावला , डिंपल गर्ल प्रिटी जिंटा , बार्बी डॉल का इंडियन अवतार ऐश्वर्या अल्हड काजोल , निश्छल सौन्दर्य की मूर्ति मनीषा कोइराला , किसी भी हद तक जाने को तैयार ममता कुलकर्णी जैसी नायिकाएँ लगातार सफल फिल्मे देकर हिंदी भाषी दर्शकों के दिलों दिमाग पर अपनी जगह बना चुकी थी। तेज़ाब ' में उनपर फिल्माए गीत ' एक दो तीन चार ने रातों रात उन्हें सफलता की कई पायदान एक साथ फलाँगने में मदद की। फिल्म दर फिल्म माधुरी नृत्य , अभिनय और सौंदर्य की मिसाल बनती गई। फिल्म समीक्षकों ने उनमे मधुबाला और स्मिता पाटिल का मोहक कॉम्बिनेशन देखना आरंभ कर दिया। यह सच भी था। उनकी मुस्कान को भुवन मोहिनी मुस्कान कहा जाने लगा। उनके लावण्य का सुरूर सिर्फ दर्शकों को ही सम्मोहित नहीं कर रहा था वरन विश्वविख्यात चित्रकार मकबूल फ़िदा हुसैन भी उन पर इस कदर आसक्त हुए कि वे उनकी कई पेंटिंग्स पर उकेरी गई। हुसैन साहब यही नहीं रुके माधुरी को केंद्र में रखकर उन्होंने फिल्म ' गजगामिनी ' बना डाली। रंगों , नृत्य और ध्वनि की मोहक जुगलबंदी के बावजूद यह फिल्म सामान्य दर्शक के सर पर से निकल गई।
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माधुरी न सिर्फ खुद शीर्ष सिंहांसन पर बैठने में सफल हुई वरन कई नायकों के लड़खड़ाते करियर को संवारने में भी उनकी मदद ली गई थी । महानायक अमिताभ बच्चन की ' बड़े मियां छोटे मियां ' को सहारा देने के लिए माधुरी का एक गीत विशेष रूप से फिल्म में जोड़ा गया था , कुमार गौरव की फिल्म ' फूल ' के लिए राजेंद्र कुमार ने माधुरी की कितनी मिन्नतें की थी , अनिल कपूर के छोटे भाई संजय कपूर के साथ फिल्म ' राजा ' की नायिका बनने जैसे कई और उदहारण है जो अब फ़िल्मी इतिहास का हिस्सा हो चुके है।
लाइम लाइट में रह चुके लोगों को अक्सर एक तकलीफ से गुजरना होता है। अतीत में वे जिस मुकाम पर थे अपनी वापसी पर उस जगह किसी और को बैठा पाते है। इसके बाद पुनः उनका नए सिरे से संघर्ष आरंभ हो जाता है। क्योंकि तब तक उनका प्रशंसक वर्ग किसी अन्य नायिका को सर माथे बिठा चूका होता है। सफल वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही यह नायिका अमेरिका की चकाचौंध के बावजूद ' आर्क लाइट ' के दायरे को भूल नहीं पाई और शादी के सात वर्ष बाद ही सपरिवार मुंबई लौट आई। अपनी वापसी पर उन्होंने कुछ फिल्मे , कुछ टीवी शोज भी किये परन्तु बावजूद उनके परिपक्व सौंदर्य के वह जादू नदारद था जिसने एक समय उन्हें आसमान पर बैठा दिया था।
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सफल लोगों के मानस में गुजरे सुनहरे समय की स्मृतियाँ आसमानी बिजली की तरह रह रह कर कौंधती है। अतीत की तालियां और उनकी एक झलक के लिए लोगों की भीड़ की यादें न मालुम उनकी कितनी राते नींद के इंतजार में जाया करती होंगी उसका हिसाब उनसे बेहतर दूसरा नहीं रख सकता। सुखद स्मृतियों के दंश जब सामान्य मनुष्य को विचलित कर देते है तो शीर्ष से उतरे नायक की मनोस्थिति का कयास ही लगाया जा सकता है। छिटक चुके लम्हों को फिर से पकड़ने की उत्कंठा उन्हें कई लेवल नीचे जाकर काम करने को मजबूर कर देती है। बकवास फिल्म का हिस्सा बनने की माधुरी की मज़बूरी को इसी संदर्भ में देखा जा सकता है।
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