Wednesday, October 10, 2018

कुछ प्रेम कहानियां ऐसी होती है जिनके होने का कोई सबूत नहीं होता


कुछ प्रेम कहानियां ऐसी होती है जिनके होने का  कोई सबूत नहीं होता परन्तु उनके किस्से बरस दर बरस सुनाये जाते रहे है। ऐसी ही एक कहानी महानायक अमिताभ से जुडी हुई है जो हर बरस उनके जन्मदिन (11 अक्टूबर ) पर हवाओ में तैरने लगती है। इसकी ठोस वजह भी है क्योंकि बिग बी के जन्म दिन से ठीक एक दिन पहले (10 अक्टूबर ) रुपहले परदे की दिवा रेखा का भी अवतरण दिवस पड़ता है। सत्तर  के दशक में आरम्भ इस प्रेमकथा की शुरुआत ' दो अनजाने ' से मानी जाती है। यद्धपि रेखा गणेशन फिल्मों के लिहाज से बच्चन जी से सीनियर है। वे जब फिल्मों में आई थी तब महज सोलह बरस की ही थी। उनकी पहली फिल्म ' सावन भादो ' थी जिसके प्रदर्शन के बाद फ़िल्मी पत्रिकाओं ने उन्हें ' मोटी बतख ' नाम दिया और उनके सहनायकों ने उन्हें  'काली कलूटी ' कहकर पुकारा। इस तथाकथित प्रेम कहानी के दोनों ही पात्र स्वभाव में एक दूसरे से जुदा थे। अमिताभ जहाँ धीर गंभीर किस्म के अनुशासन प्रिय थे वही रेखा घोर लापरवाह चुलबुली टाइप की अल्हड युवती हुआ करती थी।  शायद प्रेम ऐसी  ही परस्पर विरोधी परिस्तिथियों में अंकुरित हुआ करता है। 
अक्सर उद्धत किया जाता है कि जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के लोकप्रिय नाटक ' पिग्मेलियन ' के प्रमुख पात्र प्रोफेसर हिग्गिन्स की तरह अमिताभ रेखा की जिंदगी में आये।  और कई मायनों में यह सच भी है। फोनेटिक्स के विद्धान  प्रो हिग्गिन्स इस नाटक में सड़क किनारे फूल बेचने वाली गंवार लड़की को संवार कर इतनी सभ्य और सुसंस्कृत बना देते है कि राजपरिवार भी उसे सम्मान देने लगता है। अमिताभ के आभा मंडल का प्रभाव था कि रेखा ने उसमे खुद को तलाशा और निखर गई। भारतीय आख्यानों में देह को मंदिर मानने की बाते सदियों से मौजूद है। इसे चरितार्थ करने वाली रेखा संभवतः पहली नायिका बनी। उन्होंने खुद को इतना तराशा कि सौन्दर्य के प्रतिमान स्थापित होते चले गए। उनका बदला रूप और उनके अभिनय से सजी दर्जनों फिल्मे उनकी देह के सुन्दरतम हो जाने के रिकार्डेड दस्तावेज की शक्ल में चिर स्थायी हो गए है। 
अमिताभ रेखा की जिंदगी में प्रो हिग्गिन्स की तरह आये थे  और उसी तरह निकल भी गए। यह एक ऐसी कहानी थी जिसका क्लाइमेक्स इसकी शुरुआत में ही तय हो गया था।  शादी शुदा अमिताभ के लिए इस रिश्ते को परवान चढ़ाना संभव नहीं था। उनका करियर बुलंदी पर था और किसी भी तरह की नकारात्मक खबर उन्हें और उनके परिवार को तबाह कर सकती थी इसलिए वे चुपचाप किनारे हो गए। फिल्म सिलसिला इस कहानी का पटाक्षेप मानी जाती है क्योंकि इसके बाद यह जोड़ी फिल्म जगत के दिग्गजों की मनुहार के बाद भी एक फ्रेम में कभी नजर नहीं आई। 
मुखर रेखा आज भी घुमा फिराकर इस रिश्ते को स्वीकार लेती है परन्तु महानायक ने इस विषय पर बीते तीन  दशक में कभी मुंह नहीं खोला। सिलसिला संभवतः ऐसी पहली  फिल्म थी जिसके प्रमुख तीन  पात्र अभिनय नहीं कर रहे थे , वे यथार्थ में जी रहे थे। अमिताभ भले ही आज  इस बात को नहीं स्वीकारते हो   परन्तु जब कभी केबीसी का कोई  प्रतियोगी  उनसे ' तन्हाई की एक रात इधर भी है उधर भी ' सुनाने की फरमाइश करता है तो उस पल उनकी आवाज में गुजरा लम्हा जैसे ठिठक सा जाता है।     
कुछ प्रेम कहानियों के पात्र कभी नहीं मिलते।एक ही शहर में  वे रेल की पटरियों की तरह साथ रहते हुए कभी नहीं मिलते  शायद इसीलिए वे कहानियां अमर हो जाती है। 

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