जून का पहला पखवाड़ा गुजरते ही मानसून के आगमन की सुगबुगाहट सुनाई देना आरम्भ हो जाती है। शेयर बाजार , अर्थशास्त्री और किसान दक्षिण पश्चिम में उठे काले बादलों को देख अपने कयासों के घोड़ों को खुला छोड़ देते है। रेडियो सीलोन और विविध भारती अपने खजाने से वर्षा गीत निकालकर मानसून के स्वागत में जुट जाते है। कुछ टीवी चैनल जो वाकई संजीदा टाइप के गीतो के लिए देखे जाते है , अपनी प्रस्तुति में ' श्वेत श्याम ' वर्षा गीतों को शामिल कर लेते है। ' मौसमे बरसात ' के अलावा शायद ही किसी और ऋतू के लिए देश में इतने जतन किये जाते होंगे ! हिंदी और क्षेत्रीय फिल्मों में कहानी को आगे बढ़ाने के लिए , कोई ट्विस्ट देने के लिए , कोई सिचुएशन पैदा करने के लिए या फिर कामोद्दीपन को हवा देने के लिए बारिश का प्रयोग किया जाता रहा है। बरसात न केवल रोमांस और इमोशन का प्रतीक रही है वरन आस्था और गर्व का प्रतीक बनकर भी आती रही है। लगान (2001 ) के आरंभिक दृश्य में काले घुमड़ते बादलों का बिन बरसे गुजर जाना जहाँ गाँव वालों को निराशा में धकेल देता है वही अंत में अंग्रेज जब शर्त हारकर गाँव छोड़कर जा रहे होते है तब बरसात का बरसना उनकी विजय का उत्सव बन जाता है। फिल्मों में वर्षा गीतों का उपयोग पांचवे दशक से ही होना आरम्भ हो गया था। यह ट्रेंड कभी अश्लील या अप्रीतिकर होते हुए या फिर कभी सिनेमैटिक मास्टरपीस बनकर दर्शकों को भिगोता रहा है। रसिक दर्शकों और गंभीर समीक्षकों के अपने पसंदीदा वर्षा गीत रहे है। किसी के लिए ' एक लड़की भीगी भागी सी ' ( चलती का नाम गाडी ) यादगार है तो किसी के लिए अनिल मनीषा की मासूमियत दर्शाता ' रिमझिम रिमझिम ' ( 1942 ए लव स्टोरी ) अविस्मरणीय है तो किसी के लिए ' टिप टिप बरसा पानी ' ( मोहरा ) सर्वश्रेष्ठ है। अधिकांश ' सेंसुअस ' वर्षा गीत स्टूडियो की चारदीवारी में आर्टिफीसियल बारिश में शूट किये गए है परन्तु कुछ गीतों के लिए फिल्मकारों ने बकायदा मानसून का इन्तजार किया है। इन गीतों को रियल लोकेशन पर प्राकृतिक बरसात में ही फिल्माया गया है। ऐसा ही एक गीत है जो अधिकांश फिल्म समीक्षकों की नजर से छूट गया है। 1979 में बासु चटर्जी के निर्देशन में आई अमिताभ बच्चन मौसमी चटर्जी अभिनीत ' मंजिल ' ने वैसे तो बॉक्स ऑफिस पर औसत प्रदर्शन किया था परन्तु इसका सुमधुर गीत ' रिमझिम गिरे सावन सुलग सुलग जाये मन ' वास्तविक बरसात गीत बनकर उभरा।इस फिल्म का संगीत आर डी बर्मन ने दिया था और गीतकार थे योगेश।
बासु चटर्जी के बारे में कहा जाता था कि वे मध्यम वर्ग के लोगों के लिए ही फिल्मे बनाते थे और उसी वर्ग से अपने किरदारों को उठाते और रियल लोकेशन पर ही अपनी फिल्मों को शूट करते थे। मजिल ' का यह गीत उन्होंने मुंबई की प्रसिद्ध और वास्तविक जगहों पर भर बारिश में फिल्माया है। सड़कों पर जाती आती एम्बेसडर और फ़िएट कारों के साथ नजर आती बेस्ट की बसे , आम प्रेमियों की तरह गेटवे ऑफ़ इंडिया , मरीन ड्राइव , ओवल मैदान , चर्च गेट , विक्टोरिया टर्मिनस ,पर पानी में छपक छपक करता यह जोड़ा जिन्हे देखकर भी अनदेखा करते लोग। न अमिताभ को कोई पहचान पाता है न मौसमी को। कही कोई नकलीपन नहीं। अमिताभ गीत की शुरूआत में जो सूट पहने होते है और मौसमी जिस शिफॉन की साडी में होती है उसी में वे पूरा मुंबई दर्शन कर लेते है।
बैकग्राउंड में लता मंगेशकर की आवाज , मानसून के बादलों से बना गहरा उजाला , साफ़ सुथरा सा शहर , एक गीत के कालजयी होने के लिए जरुरी सभी इंग्रेडिएंट मौजूद है। इस गीत के दूसरे वर्शन में इसे किशोर कुमार ने गाया है जो अधिकांश समीक्षकों और संगीत प्रेमियों के अनुसार लता वाले वर्शन से बेहतर बन पड़ा है। इस गीत में अमिताभ अपने दोस्त की शादी में यह गीत गाते है। अधिकांश लोगों को शायद मालुम न हो कि जिस मित्र की शादी है वह अमिताभ के रियल मित्र अनवर है। अनवर कॉमेडी किंग मेहमूद के छोटे भाई थे और अमिताभ ने अपने बेकारी के दिन अनवर के फ्लैट पर ही गुजारे थे ।
रिमझिम गिरे सावन ' एक तरह से उस शहर का सम्मान है जो एक समय में रोमांटिक होने के साथ खूबसूरत भी हुआ करता था। काफी पहले जब सड़के पानी के कारण बंद नहीं हुआ करती थी ,भीड़भाड़ कम हुआ करती थी , ट्रैफिक कम हुआ करता था , मुंबई जब बंबई हुआ करता था।