Friday, September 30, 2016

Rear window (1954) :पिछवाड़े की खिड़की :


' सस्पेंस ' शब्द जेहन में आते ही जो नाम हमारी स्मृति में कौंधता है  वह बिलाशक ' अल्फ्रेड हिचकाक ' (Sir Alfred Joseph Hitchcock ) का होता है ।  पांच दशक में फैले इस प्रतिभाशाली और प्रभावशाली फ़िल्मकार का कॅरियर सिने जगत को रहस्य रोमांच और मनोवैज्ञानिक भय से रूबरू कराते हुए आज भी अपना आकर्षण बनाये हुए है। सस्पेंस को केंद्र में  रखकर हिचकॉक के पहले भी  कई फिल्मे बनी परंतु ' चिंता ' भय ' रहस्य ' और बेचारगी  को जितनी ऊंचाई पर हिचकॉक लेकर गए उतनी जोखिम किसी ने नहीं उठायी । केमेरे का एंगल , फिल्म की एडिटिंग, चोंकाने वाला एन्डिंग - दुनिया भर के फिल्मकारों ने हिचकॉक के  इन नायाब नुस्खों को बखूबी अपनाया।  आज भी कई विनम्र डायरेक्टर अपने आप को हिचकॉक स्कूल का स्टूडेंट मानने में  गर्व महसूस करते है।हिचकॉक का फ़िल्मी सफर ब्रिटेनसे लेकर अमेरिका तक फैला हुआ है। इस सब्जी विक्रेता के बेटे  ने साइलेंट फिल्मो के दौर से फिल्म मेकिंग की शुरुआत की थी और उस दौरान बनी बीस से अधिक फिल्मे आज भी  ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्यूट की बेशकीमती धरोहर मानी जाती है। दौर कोई सा भी रहा हो , हिचकॉक ने अपना पसंदीदा सब्जेक्ट '  हॉरर ' और ' सस्पेंस ' कभी नहीं  छोड़ा। यहाँ तक की कि उनकी बनाई कॉमेडी और रोमांटिक फिल्मों में भी  सस्पेंस का तड़का जरूर होता था। यही वजह है कि उनके नाम के साथ आज भी The Master of Suspense की उपाधि  अवश्य लगाईं जाती है। हिचकॉक ने तकरीबन 60 से अधिक फिल्मो को प्रोड्यूस और डायरेक्ट किया। उनकी हरेक फिल्म में उनका  ' कैमियो  अपीयरेंस ' जरूर होता था।  यह ऐसी सिग्नेचर  स्टाइल थी जिसे आज तक  कॉपी किया जा रहा है।
1954 में हिचकॉक ' रियर विंडो ' ( Rear Window ) लेकर आये।  यह उनकी दस सर्वक्षेष्ठ फिल्मों में शीर्ष स्थान पाने वाली फिल्म मानी जाती है। इस सस्पेंस मिस्ट्री थ्रिलर का आईडिया उन्हें 1942 में एक जासूसी लघु कथा से मिला था। फिल्म का नायक जेफ(james stewart)  एक प्रॉफेश्नल फोटोग्राफर है जो एक दुर्घटना में टांग तुड़वा बैठा है। पैर में प्लास्टर चढ़ा होने से उसकी जिंदगी कुछ दिनों के लिए व्हील चेयर में सिमट गई है। सुन्दर सलोनी लिसा( Grace kelly) उसकी प्रेमिका है जो अक्सर उसके अपार्टमेंट पर आती रहती है।
जेफ़ समय बिताने के लिए अपने अपार्टमेंट के पीछे बने पांच मंजिला अपार्टमेंट ब्लॉक के फ्लैटों में  अपने पावरफुल कैमरे से  ताक झांक करता है।  इसी दौरान उसे समझ में आता है कि सामने वाले फ्लैट कोई बड़ा अपराध हुआ है। सस्पेंस और नाटकीय घटनाओ के बाद लिसा और जेफ उस अपराधी को कानून के शिकंजे में पहुंचा देते है। हिचकॉक ने इस साधारण सी कहानी में  तीव्र उत्तेजना पैदा की है। दर्शक की कल्पना से परे  पात्रों का डिटेल सारी कहानी समझाता चलता है। सम्पूर्ण फिल्म एक ही अपार्टमेंट में ख़त्म होती है परंतु घटनाओ और दृश्य की तीव्रता दर्शक को बांधे रखती है। हिचकॉक ने पूरी फिल्म पेरामाउंट स्टूडियो में विशाल सेट लगाकर शूट की थी। आज साठ साल बाद भी फिल्म दर्शक को सोंचने का मौका नहीं देती। यह हिचकॉक का मैजिक ही था जिसने फिल्म को कालजयी बना दिया है।



Sunday, September 4, 2016

The Song Of sparrow (2008 ) जीवन मूल्य समझाती एक फिल्म

ईरान के प्रतिष्ठित फ़िल्मकार मजिद  माजिदी की फिल्मे देखना सादगी को सादगी के साथ देखना है। उनका कैमरा जब ग्रामीण ईरान को देखता और जो रूपक गढ़ता है तो एक पल के लिए आपको लगता है - आप मुंशी प्रेमचंद की कोई कहानी पढ़ रहे है। हॉलीवुड के  चोटी के फिल्म समीक्षक  जब  उनकी फिल्मो की बात करते है तो  विशवास नहीं होता कि एक दुश्मन देश के  नागरिक को इस तरह सर पर बैठाया जा सकता है।   यूँ तो माजिदी की लगभग सभी फिल्मे ईरान की भोगोलिक सीमाओ के पार  सराही गई है परंतु ख़ास तौर पर ग्रामीण पृष्ठ भूमि पर बनी फिल्मों में वे कमाल कर जाते है। ताज्जुब होता है कि आर्थिक रूप से लड़खड़ाते और कठमुल्लाई ईरान में वे विश्व स्तर की फिल्मे बना लेते है ,जबकि विकासशील भारत के फ़िल्मकार  उनके घुटनो तक भी नहीं पहुँच पाते।
Song Of Sparrow (2008 ) माजिदी की ऐसी ही सादगी से भरी  फिल्म है। फिल्म का नायक करीम एक गरीब किसान है जो अपनी बीबी नरगिस  और तीन बच्चों के साथ रहता है। जीवन यापन के लिए वह एक शतरमुर्ग के बाड़े की देखभाल करता है। एक दिन उसे बताया जाता है कि उसकी किशोर बेटी ने अपने सुनने की मशीन(hearing aid ) गुमा दी है। घर के रास्ते पर एक भूमिगत तालाब में बच्चे उस मशीन को ढूंढ रहे है। करीम भी उनके साथ शामिल हो जाता है। उसका आठ साल का बेटा प्लान बनाता  है कि इस तालाब की सफाई कर मछलिया पाली जाये।  करीम बच्चों को झिड़क देता है कि इस तरह के सपने देखकर करोड़पति नहीं बना जा सकता। बच्चे मशीन ढूंढ देते है। परन्तु वह बेकार हो चुकी है। एक दिन एक शतर्मुर्ग बाड़े से भाग जाता है और करीम  को अपनी नोकरी से हाथ धोना पड़ता है। अपनी बेटी की मशीन सुधरवाने के लिए करीम को तेहरान जाना पड़ता है जहां उसे बाइक टेक्सी ड्राइवर समझ लिया जाता है।अब  करीम पैसा कमाने लगता है परंतु उसके अंदर का भोलापन और विनम्रता ख़त्म होने लगती है और लालच पसर जाता है।  वह अपनी बेटी की मशीन भी भूल जाता। रोजाना तेहरान से लौटते हुए वह अपनी बाइक पर कुछ न कबाड़ा लेकर घर आता है। एक दिन इसी कबाड़ में दबकर वह अपनी टांग तुड़वा लेता है।  घर चलाने के लिए आठ साल  के बेटे को काम करना पड़ता है। परंतु बेटा अभी भी मछलिया पालने के अपने सपने  को जीवित रखे हुए है। अपने हम उम्र दोस्तों के साथ वह एक ड्रम में मछलियां खरीद कर लाता है परंतु ड्रम लीकेज हो कर टूट जाता है। मछलियों को मरने से बचाने के लिए  उन्हें पानी के नाले में छोड़ना पड़ता है।  यह द्र्श्य करीम को बहुत कुछ समझा देता है ,और दर्शक को अंदर तक भीगो देता  है। इसी तरह के और भी द्रश्य है जो दर्शक की  आँखे तरल कर  देते है।
'' सांग ऑफ़ स्पैरो '' एक आदमी के अंदर मौजूद इंसान को सहेजने की कोशिश है।
यह फिल्म ईरान की ऑस्कर में एंट्री कराने वाली फिल्म थी। यधपि बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्मो के  टॉप फोर में शामिल होने के बाद भी ऑस्कर नहीं पा सकी थी परंतु उसी वर्ष बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में पुरूस्कार जीत कर अपनी धाक जमा दी थी। 

दिस इस नॉट अ पोलिटिकल पोस्ट

शेयर बाजार की उथल पुथल में सबसे ज्यादा नुकसान अपने  मुकेश सेठ को हुआ है। अरबपतियों की फेहरिस्त में अब वे इक्कीसवे नंबर पर चले गए है। यद्ध...