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2006 के पूर्व गुजरात भ्रमण करने वाले पर्यटकों की सालाना संख्या एक करोड़ थी परन्तु महानायक अमिताभ बच्चन के निमंत्रण '' कुछ दिन तो गुजारों गुजरात में '' के बाद यह संख्या 2013 में दो करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है। होटल और होस्पिटेलिटी सेक्टर को लगभग एक लाख करोड़ का माना गया है जिसमे गुजरात 34 % का सबसे बड़ा हिस्सा देता है। महज एक विज्ञापन ने इतना बड़ा बदलाव किया है।
डिटर्जेंट मार्किट के पुराने खिलाड़ी' निरमा ' के चार साल से चल रहे विज्ञापन को याद कीजिये। कीचड़ में फसी एम्बुलेंस को चार फेशनेबल युवतियां { हेमा , जया , रेखा , सुषमा }धकेल कर बाहर निकाल देती है। तमाशबीन पुरुषो की दुनिया में उनके आत्मनिर्भर होने का उदघोष इससे बेहतर तरीके से नहीं हो सकता।
विज्ञापन की दुनिया के पुरोधा अक्सर ' मिरर थ्योरी ' की बात करते है। विज्ञापन बदलाव ला रहे है या बदलाव की वजह से विज्ञापन अपने को बदल रहे है। बड़ा मुश्किल है किसी नतीजे पर पहुचना। यही इस थ्योरी का सार है। अन्य और उदाहरण भी है। ज्वेलरी के एक विज्ञापन में बीबी खुद को डायमंड गिफ्ट करती है। एक अन्य में एक इन्वेस्टर पति अपना काम छोड़ कर उपन्यास लिख रहा है। हेवल्स के विज्ञापन में कामकाजी पत्नी पति को रोजमर्रा के काम समझा कर ऑफिस के लिए निकल रही है।कहीं भी किसी पर अहसान का भाव नहीं है न ही किसी को निचा दिखाने की कोशिश है। सन्देश स्पस्ट है, ओरतो की इज्जत करो। लैंगिक आधार पर काम का बटवारा गुजरे समय की बात हो रहा है।
बदलाव तो हो रहे है। फिर वे 'टाटा टी ' के आव्हान 'जागो रे!!! ' की वजह से हो रहे हो या 'आईडिया ' के उल्लू मत बनाओ ' की वजह से। क्योंकि 2014 के आम चुनाव में 60 लाख नोटा मतों का पड़ना कोई हलकी फुलकी घटना नहीं मानी जा सकती है।
सार्थक चिंतन ...
ReplyDeletegood!
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