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हमारे देश में खेल और खिलाड़ियों पर गिनती की फिल्मे बनी है। पिछले तीन दशक के बही खाते टटोले जाए तो कुल पांच छे फिल्मे हाथ आती है जिनमे ' फूटबाल ' एक किरदार के रूप में मौजूद है। उलेखनीय फिल्मों में प्रकाश झा की ' हिप हिप हुर्रे ' गुरिंदर चड्ढा की 'बेंड इट लाइक बेकहम ' महत्वपूर्ण है।
1984 में प्रकाश झा ने अपने निर्देशकीय कॅरियर की शुरुआत ' हिप हिप हुर्रे ' से की थी। इस फिल्म की पटकथा गुलजार ने लिखी थी और संगीत वनराज भाटिया का था जो उस समय दूरदर्शन के अधिकाँश धारावाहिकों को संगीत देकर प्रसिद्धि के शिखर पर विराजित थे। फिल्म में यशुदास की आवाज में एक अच्छा गीत था '' एक मोड़ पर मेने कहा उसे रोककर , आँख मिला के बात कर ए जिंदगी '' यह एक मात्र ऐसी फिल्म थी जिसका कथानक फूटबाल के खेल के आस पास बुना गया था। राज़ किरण और दीप्ती नवल की जोड़ी ने भी फिल्म को दर्शनीय बना दिया था। यह बात जरूर है की उस समय ध्वनि संयोजन और फोटो ग्राफी पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता था परन्तु गुलजार का कहानी कहने का अंदाज फिल्म में उत्सुकता बनाये रखता है। फिल्म youtube पर मौजूद है जब चाहे देखी जा सकती है।
कोई भी घटना को पकड़कर उसका तेल निकाल देने वाले हमारे न्यूज़ चैनल इस विश्व कप की इस तरह रिपोर्टिंग कर रहे है मानो साओ पोलो हरियाणा में कही है। पता नहीं खेलों में हमारे कब अच्छे दिन आएंगे ?
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