अख़बार एक बार फिर से जगजीत सिंह के फ़ोटो से भरे है। एक बरस हो गया है उन्हें अंतिम यात्रा पर निकले हुए। उनके जाने का अहसास अचानक से सामने आगया। बिमारी और हफ्ते भर की नीम बेहोंशी ने उन्हें आँख झपकाने का मौका नहीं दिया था । अगर जगजीत न जाते तो उस बरस देश के साठ शहरों में साठ राते जगजीत की मखमली आवाज की गवाह होने वाली थी। इस बार मौका था उनकी याद में जारी होने वाले डाक टिकिट का। प्रधान मंत्री के साथ अकेली चित्रा सिंह को जगजीत की तस्वीर थामे देखना , जगजीत ने कभी सोंचा न होगा।
युवा पुत्र की असमय मृत्यु और उसके बाद आया उनका एल्बम'' सम वन सम वेयर '' आज तक फिजाओ में घूम रहा है।
अपने अस्तित्व का संकट झेल रहा डाक तार विभाग जगजीत के बहाने अपने आप को सम्मानित कर रहा है। अपने अस्सी अलबमों से जगजीत तो कब के अमर हो चुके है।
वक्त रहता नहीं कही रूककर उसकी आदत भी आदमी सी है...........
युवा पुत्र की असमय मृत्यु और उसके बाद आया उनका एल्बम'' सम वन सम वेयर '' आज तक फिजाओ में घूम रहा है।
अपने अस्तित्व का संकट झेल रहा डाक तार विभाग जगजीत के बहाने अपने आप को सम्मानित कर रहा है। अपने अस्सी अलबमों से जगजीत तो कब के अमर हो चुके है।
वक्त रहता नहीं कही रूककर उसकी आदत भी आदमी सी है...........
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