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Friday, April 29, 2011
एक राज कुमार था , एक राजकुमारी थी .
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Friday, April 15, 2011
अमिताभ बच्चन .....
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इसी दौर में मशहूर फ्रेंच निर्देशक तृफौत ने उन्हें विशेषण दिया ' वन मेन इंडस्ट्री ' का , और यह सही भी था उस समय अमिताभ एक नंबर से लेकर दस नंबर तक कब्जा जमाये हुए थे . भावना सोमाया अपनी पुस्तक ' अमिताभ बच्चन - द लेजेंड में लिखती है '' गोर से देखे आपको एक अभिनेता दिखेगा जिसके हाथों में अपनी नियति का नियंत्रण है'' . रोलर कोस्टर की तरह रोमांचक उनके करीअर की कहानी को बयान करते यह शब्द सही लगते है .
आकाशवाणी से खारिज हो चुकी आवाज को सबसे पहले नेशनल अवार्ड जीत चुके फिल्मकार मृणाल सेन ने पहचाना और सात हिन्दुस्तानी से भी पहले मौका दिया अपनी फिल्म'' भुवन शोम ''में . गूंजने वाली इस आवाज का उपयोग फिर हर महान फिल्मकार ने बरसो बाद सिर्फ इस लिए किया कि उनके पास अमिताभ के लिए उपयुक्त रोल नहीं था परन्तु वे उन्हें किसी न किसी तरह अपनी फिल्म का हिस्सा बनाना चाहते थे , उल्लेखनीय है , सत्यजित रे - शतरंज के खिलाड़ी , ऋषिकेश मुखर्जी - बावर्ची .
''टु बी आर नॉट टु बी '' में जया बच्चन लिखती है '' वे एक रहस्य मयी पहेली कि तरह है ' जितने लोकप्रिय वे यहाँ है उतने ही दुनिया के दुसरे कोने में भी है . फ्रांस के डयूविले शहर कि मानद नागरिकता जया की इस बात को रेखांकित करती है . इंग्लॅण्ड की रानी और अन्तरिक्ष यात्री युरी गागरिन ऐसे मात्र दो लोग है जिन्हें यह सम्मान अमिताभ के पूर्व मिला है .
एक समय मीडिया को पास न फटकने देने वाले अंतर्मुखी अमिताभ पिछले तीन सालों से मुखर हो उठे है . बिला नागा अपने मन कि बात ब्लॉग पर लिख कर उन्होंने साहित्य की नई विधा इजाद की है . पिछले हफ्ते पोलैंड सरकार ने डॉ . हरिवंश रॉय बच्चन के नाम पर हिंदी लायब्रेरी शुरू करते हुए अमिताभ को शहर की चावी सौपी और उनके हाथों की छाप संरक्षित की. एक भारतीय के लिए यह गर्व की बात है . यह सम्मान हमारे किसी राजनेता को भी नसीब नहीं हुआ है .
लगे हाथ - रितुपर्णो घोष की फिल्म '' द लास्ट लियर '' अमिताभ की पहली अंग्रेजी भाषा में बनी फिल्म है . उत्पल दत्त द्वारा लिखी कहानी पर बनी इस फिल्म में काम करने के लिए अमिताभ ने स्वयं आगे आकर पहल की थी , वजह सिर्फ इतनी थी की उत्पल दत्त उनकी पहली फिल्म सात हिन्दुस्तानी के सह कलाकार थे .
Friday, April 1, 2011
आज भी सपने में मिलती है मिस चमको .
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( सन्दर्भ :- फिल्म चश्मे बद्दूर के रीमेक की खबर) देखा जाए तो हर साल अपने में कुछ ख़ास लिए होता है .1981 का साल भी कुछ इसी तरह का था . अमिताभ बच्चन का शिखर समय चल रहा था . उनकी दो सुपर हिट फिल्मे ' लावारिस ' और 'नसीब ' धूम मचा रही थी . जीतेन्द्र को दक्षिण भारत का सहारा मिल चुका था . अगली क्लास के दर्शक उनकी' मवाली ' 'तोहफा ' और 'हिम्मतवाला ' के गानों को गुनगुना कर थिरक रहे थे . अपर्णा सेन'' 36 चोरंगी लेन'' के जरिये भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम दिला रही थी , ऐसे में अजीबोगरीब नाम वाली एक फिल्म ने सिनेमा घरो में दस्तक दी . इस फिल्म का नाम था चश्मे -बद्दूर . यह दौर अमिताभ की एक्शन और श्री देवी -जीतेन्द्र के ता - थैया टाइप के नाच गानों का था .इसी दौरान जुबली कुमार (राजेंद्र कुमार ) '' लव स्टोरी '' से देश को एक युवा और ताजगी भरी भरा चेहरा कुमार गौरव के रूप में दे चुके थे . चश्मे -बद्दूर के साथ एक ही प्लस पॉइंट था , इसकी निर्देशिका सई परांजपे का नाम . सई इसके पूर्व नेशनल अवार्ड जीत चुकी फिल्म '' स्पर्श '' को निर्देशित कर अपनी पहचान बना चुकी थी .
दूरदर्शन की प्रोडूसर और डायरेक्टर रही साईं स्वयं एक अच्छी लेखिका रही है . बच्चो के लिए लिखी उनकी छे से ज्यादा किताबे राष्ट्रीय और राज्य स्तर के पुरूस्कार से सराही गई है . चश्मे बद्दूर की कहानी स्वयं सई ने ही लिखी थी .
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चूँकि कहानी और डायरेक्शन दोनों पर सई की पकड़ थी, लिहाजा कुछ सीन यादगार बन गए थे . ख़ास तौर पर रवि बासवानी का फ्लेश बेक में जाने वाला सीन , फारुक और दीप्ति की पहली मुलाक़ात का सीन , . राकेश बेदी के साथ दीप्ती के नौका विहार का द्रश्य और नदी में भेंसों के नहाने वाला सीन ,..
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चश्मे बद्दूर के रिमेक का बीड़ा डेविड धवन ने उठाया है. वेसे साल भर पहले भी इसके रिमेक और अधिकार वियोकाम 18 के खरीदने और ओनिर के निर्देशन की बात चली थी .डेविड ने गोविंदा के साथ कामेडी फिल्मो की झड़ी लगाईं है परन्तु सई के लेवल पर पहुचना उनके बस में नहीं है . हांलाकि बरसो पहले डेविड सई की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म में सहायक रह चुके है .
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लगे हाथ ---चश्मे बद्दूर में रेखा और अमिताभ ने एक छोटी सी रोमांटिक भूमिका की थी .
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