Monday, March 7, 2011

:पल दो पल का शायर ....



''मसरूफ जमाना मेरे लिए क्यू वक्त अपना बर्बाद करे '' अपनी मृत्यु से तीन साल पहले शायद विधाता ने यह शब्द साहिर लुधियानवी से कहलवा दिए थे . स्वयं साहिर को भी समाज की संवेदन शुन्यता का अंदाजा नहीं होगा कि देश उनके योगदान को इस तरह बिसार देगा. लुधियाना ,जहां उनका जन्म हुआ और बचपन बीता और जो सारी उम्र उनके नाम से पहचान पाता रहा , ने भी साहिर की याद को जिन्दा रखने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई . आज लुधियाना में साहिर के नाम पर कोई स्मारक नहीं है न ही कोई सड़क उनका नाम पाकर धन्य हुई है . जबकि अपनी नज्मो , गीतों , से साहिर ने देश का नाम सरहदों के पार तक रोशन किया .
प्रेम की पराकाष्टा से दुनिया को परिचित कराने वाले इस गीतकार के लिए यह फक्र की बात है कि एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरता है जब रेडिओ श्रोता साहिर के लिखे गीत की फरमाइश न करते हो .
मात्र उन्नीस बरस की उम्र में साहिर लुधियानवी ने मुग़ल सम्राट शाहजहाँ को कटाक्ष करते हुए नज्म लिखी थी '' एक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर हम गरीबों का उड़ाया है मजाक '' इस बात का प्रतिक थी की इस शायर के पास कहने को बहुत कुछ है .
प्रेम की बात करने वाले साहिर के जीवन की विडम्बना थी कि वे प्रेम में असफल रहे थे . उनका पहला प्रेम गायिका सुधा मल्होत्रा से हुआ था जो ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया . फिर उनके जीवन में अमृता प्रीतम आई जो उनसे अंतिम समय तक जुडी रही. अमृता -साहिर ने अपने रिश्ते को कभी नाम देने की कोशिश नहीं की . ऐसा कई बार होता था जब वे लोग आमने सामने होकर भी बगेर एक शब्द कहे जुदा हो जाते थे . साहिर के प्रेम में गहराई थी .इसके उलट अमृता उतनी ही मुखर थी . अमृता ने अपनी किताबो , साक्षात्कारों में खुल कर साहिर के प्रति अपने प्रेम को स्वीकारा, बावजूद इसके दोनों के बीच कोई अद्रश्य बाधा रही थी कि साहिर ता -उम्र अविवाहित ही रहे .
आठ मार्च को हम साहिर का जन्म दिन मना रहे है ....इस विडम्बना के साथ कि 25 अक्टूबर 1980 को साहिर कि मृत्यु के बाद जुहू कि जिस कब्रिस्तान में साहिर को दफ़न किया गया था उस कब्र को 2010 में पुनर्निर्माण के नाम पर हटा दिया गया है . ( मधुबाला की कब्र के साथभी इसी तरह का हादसा हो चुका है )अब साहिर के प्रशंशक उनकी कब्र पर फूल भी नहीं चडा सकते है .
लगे हाथ ---लोकप्रियता के चरम पर ''नया दौर '' फिल्म के गीतों के लिए साहिर ने लता मंगेशकर के मेहनताने से एक रुपया ज्यादा माँगा था . यह बड़ी गुस्ताफी थी .परन्तु साहिर के उस समय के कद के हिसाब से निर्माता को यह मांग पूरी करना पड़ी थी . और यह साहिर ही थे जिनके दबाव के चलते आल इंडिया रेडिओ ने गायक के साथ गीतकार और संगीतकार का नाम उदघोषित करना शुरू किया .

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया .साहिर के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद -प्रदीप नील www.neelsahib.blogspot.com

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