Sunday, June 25, 2017

मास्को फिल्मोत्सव में बाहुबली



घर बैठे किसी भी देश को समझने का सबसे आसान तरीका है उस देश का साहित्य पढ़ना या फिल्मे देखना।  आजादी के तुरंत बाद जिस देश ने हमारा हाथ थामा था वह अविभाजित सोवियत रूस था। हमने गवर्नेंस का जो मॉडल पसंद किया था वह समाजवादी लोकतंत्र था क्योंकि विलायत में रह चुके नेहरू को पूंजीवादी  पश्चिम से ज्यादा साम्यवाद देश के लिए बेहतर विकल्प लगा। इसी समय राजकपूर का सिनेमा सोवियत संघ में लोकप्रियता की सभी हदे पार कर गया। आर्थिक मदद से लेकर स्पेस कार्यक्रम तक में देश को रुसी सहायता मिलती रही। नेहरू बाद की सरकारे येन केन अमरीकी समर्थक होती गई और हॉलिवुड हमारे लिए तीर्थ हो गया। हमारी फिल्मे खुलेआम अमेरिकी फिल्मों से  प्रेरणा लेने लगी। रूस जैसा मित्र और उसकी फिल्मे हम से दूर होती गई। 
विगत वर्षों में  भारतीय फिल्म प्रेमी कांन्स , बाफ्टा , ऑस्कर फिल्म समारोह तक सिमट कर रह गए। उनके लिए रुसी फिल्मों का कोई क्रेज नहीं रहा जबकि भारतीय उदासीनता के बावजूद रुसी फिल्मे और मास्को में होने वाले अंतराष्ट्रीय फिल्मोत्सव वैश्विक छाप छोड़ते रहे। विडम्बना देखिये कि मास्को फिल्मोत्सव का जिक्र भारतीय समाचारों में तब हुआ जब 39 वे मास्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के उद्घाटन सत्र में ' बाहुबली 2 ' को शामिल किया गया। 22 से 29 जून तक चलने वाले इस उत्सव में यूरोप और अमेरिकन फिल्मों के साथ सोवियत ब्लॉक के देशों की फिल्मे भी हिस्सा ले रही है।इस बार के फिल्मोत्सव में थिलर और हॉरर फिल्मों को भी शामिल किया गया है।  तर्कहीन कथानक पर बनी बाहुबली सीरीज की फिल्मों ने कमाई के नए मापदंड खड़े किये है। इसी बहाने भारतीय फिल्मो को अगर एक नयी टेरेटरी मिलती है तो यह स्वागत योग्य है। अफ़सोस की बात है , बांग्लादेश की फिल्म प्रतियोगी खंड में टॉप पर है  और भारत की कोई फिल्म इस फिल्मोत्सव के  लायक नहीं समझी गई।  
एक दौर में भारत ने रूस से काफी कुछ सीखा है। अब भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को भी रुसी फिल्म इंडस्ट्री से सबक लेना चाहिए .इस समय देश में  नौ हजार सिंगल स्क्रीन थिएटर है जो जैसे तैसे अपना अस्तित्व बनाये हुए है। जबकि रूस में 3228 पूर्ण डिजिटल थिएटर है। 

Sunday, June 4, 2017

हदें पार करता सोशल मीडिया can social media be tamed ?

हॉलीवुड फिल्मों के प्रशंसकों को 1994 में आई फिल्म ' स्पीड ' अवश्य  याद होगी। इस फिल्म के खलनायक डेनिस हॉपर फिरौती के लिए एक बस में बम रख देते है  और टेलीविज़न के लाइव कवरेज से उसकी हर गतिविधि पर नजर रखते है। हर घटना का सीधा प्रसारण करने वाले न्यूज़ चैनल अपराधियों की कितनी मदद कर देते है , इस खतरनाक चूक की और यह फिल्म ध्यान आकर्षित करती है।  इसी फिल्म में डेनिस हॉपर का डायलॉग ' टेलीविज़न भविष्य का हथियार है ' नए युग की आसन्न चुनौतियों की चेतावनी देता है। अमेरिका में इसी दौर में हर घटना का लाइव कवरेज चरम पर था और इस कला में अगुआ था सी एन एन जिसने लाइव कवरेज और टीवी पत्रकारिता में आज शीर्ष  स्थान हासिल कर लिया है। 
  यह वह दौर था जब सोशल मीडिया नाम का प्लेटफार्म अस्तित्व में नहीं आया था। लोग टेलीफोन और पत्रों से संवाद करते थे। नेटवर्किंग मीडिया नहीं था परन्तु लोग एक हद तक सोशल थे। आज के समय में निसंदेह सोशल मीडिया ने बड़ी बाधाओं को ध्वस्त कर दिया है परन्तु इसके दुरूपयोग ने सामजिक ताना बिखेर दिया है। अफवाहों का बाजार पहले भी गर्म होता था परन्तु अब सोशल नेटवर्किंग की आड़ में ख़बरों और अफवाहों की सुनामी चलाई जा रही है। कुछ और नहीं तो ऐतिहासिक तथ्यों और पात्रों को विवादों में घसीटा जा रहा है। इस माध्यम  पर चलने वाले संदेशों को इतनी तीव्रता से फैलाया जाता है कि एक समाज या एक बड़े वर्ग की मानसिकता को सामूहिक रूप से इच्छानुसार मोड़ा जा सकता है। किसके फ्रीज में बीफ रखा है , कहाँ पर बच्चा चोर गिरोह सक्रिय है , किस ख्यात लेखिका ने कश्मीर पर बयान दिया , किस पूर्व मंत्री ने अपनी पत्नी की ह्त्या की जैसे अनगिनत उदाहरण  है जहां इस माद्यम की वजह से तिल  का ताड़ बना।  हकीकत में अधिकाँश मामले वास्तविकता से कौसो दूर थे।   
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरूपयोग के नाम पर अब सोशल मीडिया पर लगाम लगाने की पहल नहीं की जा सकती न रोक लगाईं जा सकती है। यह अब काफी आगे निकल चूका है। कहने को देश में हर माध्यम के लिए नियामक संस्थाएँ है परन्तु उनको भी सरकारी आकांक्षाओं की पूर्ति का जरिया बना दिया गया है। 
डेनिस हॉपर ने टीवी से दुनिया को डराया था परन्तु सोशल मीडिया उससे भी आगे जाकर सामजिक और जातिय नफरत फैलाने का सबब बन गया है। इस माध्यम  के ' वाच डॉग ' वैसे तो पूरी मुस्तैदी से इस पर नजर रखे हुए है परन्तु वह नाकाफी है। इस प्लेटफार्म का उपयोग करने वालों को ही  विवेक और संयम बरतना होगा अन्यथा वे किसी के भी बहकावे में आकर किसी भी पल अनियंत्रित भीड़ का हिस्सा बन जाएंगे। 

दिस इस नॉट अ पोलिटिकल पोस्ट

शेयर बाजार की उथल पुथल में सबसे ज्यादा नुकसान अपने  मुकेश सेठ को हुआ है। अरबपतियों की फेहरिस्त में अब वे इक्कीसवे नंबर पर चले गए है। यद्ध...