प्रेम किसी भी समय , किसी भी परिस्थिति , उम्र के किसी भी पड़ाव पर घटित हो सकता है। कुछ इस तरह के बिन्दुओ पर रोबर्ट जेम्स वेल्लर ने 1992 में एक उपन्यास लिखा '' ब्रिजेस ऑफ़ मैडिसन काउंटी '' इटली में जन्मी और विवाह के बाद अमेरिका के आयोवा राज्य में जीवन बिता रही पारिवारिक महिला का प्रेम एक घुमन्तु फोटोग्राफर से होता है जो महज चार दिनों के लिए मेडिसन काउंटी आया हुआ है। संयोग से उसी दिन नायिका ( मेरिल स्ट्रिप ) के पति उनके दो किशोर बच्चों को लेकर एक कार्निवाल में हिस्सा लेने निकलते है। नायक ( क्लिंट ईस्टवूड ) रास्ता पूछते हुए नायिका के फार्म हाउस पहुँचते है। नायिका उन्हें रास्ता बताने के लिए उनके साथ उस ब्रिज तक जाती है जिसके फोटो लेने के लिए नेशनल जियोग्राफिक ने नायक को अधिकृत किया है। रास्ते में नायक बताता है कि वह एक बार इटली के एक गाँव में ठहरा था। संयोग से यह गाँव नायिका की जन्म भूमि थी। यही से दोनों के बीच प्रेम अंकुरण लेने लगता है।
दो घंटे से अधिक लम्बाई की यह फिल्म महज चार दिन के प्रणय की कहानी इतने सुन्दर ढंग से व्यक्त करती है कि दर्शक बंधा सा रहता है। कई द्रश्य भावनाओ को इस तीव्रता से छूते है कि बरबस ही आँखे गीली हो जाती है। फिल्म यह सन्देश भी दे जाती है कि भले ही नायक -नायिका मिल न पाये परन्तु सच्चे प्रेम का अंत नहीं होता। दर्शक हफ़्तों तक इस प्रेम कहानी के खुमार डूबा रहता है।
इस फिल्म को विख्यात फिल्म निर्माता स्टीवन स्पीलबर्ग की कंपनी एम्ब्लिन एंटरटेनमेंट ने प्रोडूस किया था। पहले स्वयं स्पीलबर्ग इसे निर्देशित करने वाले थे परन्तु कुछ व्यक्तिगत कारणों से नहीं कर पाये। तब फिल्म के नायक क्लिंट ईस्ट वुड आगे आये और उन्होंने इसका निर्देशन भी किया। मात्र बयालीस दिन में उन्होंने फिल्मांकन पूरा कर लिया था। फिल्म को कहानी के क्रम में ही शूट किया गया था ताकि नायिका के भावुक दृश्यों में तालमेल बना रहे।
1995 में रिलीज़ हुई इस फिल्म की लागत 22 मिलियन डॉलर थी जिसने महज दस हफ़्तों में 182 मिलियन का कारोबार किया था। नायिका मेरिल स्ट्रिप को इस फिल्म की वजह से उस वर्ष का अकादमी नामांकन भी मिला था। यही नहीं नायक क्लिंट ईस्टवूड , जिनकी इमेज वेस्टर्न ( काऊ बॉय की थी ) को भी इस फिल्म ने बदल दिया था।
यह फिल्म ख़त्म होने के बाद भी दर्शक के दिमाग में चलती रहती है।
प्रेम कथा समय की सीमाओ से परे होती है कुछ क्षणों की आबद्धता जीवन को एक अद्भुत रस से सराबोर कर सकती है बशर्ते वह बिना किसी प्राप्ति की आकांक्षा के हो कुछ पाने की लालसा ही सब मिलने में अवरोधक होती है सुन्दर विश्लेषण साधुवाद इस प्रस्तुति के लिए
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी प्रेरणास्पद है। आभार। मेरा आग्रह है , आप इस फिल्म को अवश्य देखें।
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