हाल ही में संपन्न असम विधानसभा के चुनावों में भाजपा की एक आकर्षक उम्मीदवार चुन कर आई। अगर व्हाट्सएप्प पर चलने वाले संदेशों और फोटो को लोकप्रियता का पैमाना माना जाए तो वे फिलहाल पार्टी प्रमुख नरेंद्र मोदी से भी आगे चल रही है।
चुनाव नतीजों के बाद से ही सोशल मीडिया पर उनके कुछ पुराने फोटोग्राफ्स की सुनामी आगई थी। इसमें अंगूरलता [ यह उन का नाम है ] का कोई दोष नहीं है।सिवाय इस बात के कि वे कुदरती तौर पर आकर्षक दिखती है।
एंड टेलीविज़न पर चल रहे धारवाहिक " भाभीजी घर पर है " के लम्पट पतियों की तरह पूरा देश इस समय अंगूरलता डेका को निहारने में व्यस्त है। आप गौर कीजिये इतनी तवज्जो साइना नेहवाल या टीना डाबी को नहीं दी जाती क्योंकि उनकी छवि आपके अवचेतन को झनझनाती नहीं है। टेनिस की दूर तक की जानकारी न रखने वाला शख्स भी मारिया शरापोवा को पहचानता है . दरअसल यह परेशानी सर्वभौम और सर्वकालिक है।
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असम के अखबारों की साइट पर जरूर अंगूरलता के बारे में उल्लेखनीय तथ्य मौजूद है। उन्होंने आठ साल तक सम्पूर्ण असम में भटक कर थिएटर किया है और उन्हें प्रतिभाशाली रंगकर्मी भी माना जाता है . चार फिल्में उनके नाम दर्ज है। चूँकि वे क्षेत्रिय फिल्मों और रंगमंच पर ही सक्रिय रही लिहाजा हिंदी दर्शकों में अपनी पहचान नहीं बना पाई।
सोशल मीडिया में यूँ ट्रोलिंग का शिकार होने वाली अंगूरलता पहली महिला नहीं है। अगर आपकी याददाश्त दुरुस्त है तो अलास्का की भूतपूर्व गवर्नर और 2008 में अमेरिका के उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार सेरा पॉलिन को याद कीजिये। उस दौर में सेरा पर बनी सेक्स पैरोडी आज तक इंटरनेट घूम रही है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और sexual objectification पर लम्बी बहस जरुरी है।
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