सेंकडो टीवी चैनल और उनमे दर्जनो सिर्फ हास्य पर आधारित। बावजूद इसके अगर मजेदार हास्य धारावाहिक का नाम तलाशा जाए तो 70 के दशक में पैदा हुई पीढ़ी केवल एक नाम लेगी '' ये जो है जिंदगी '' . शरद जोशी द्वारा लिखित यह कॉमेडी शो भारतीय टेलीविजन इतिहास का सबसे सफल और यादगार धारावाहिक है। इस शो के बाद हजारो धारावाहिक आ कर गुजर गये परन्तु इसकी ऊंचाई और परिपक्व शालीन हास्य के आस पास भी कोई नहीं पहुँच पाया। विदेशी चैनलों की तर्ज पर कई चैनलों ने अपनी ' मौलिक ' स्टैंड अप कॉमेडी दर्शकों पर थोपी परन्तु उन्होंने बेजान चुटकुलों और फूहड़ता तक ही अपने को सिमित रखा। और परिणाम यह रहा कि परिवार के साथ बैठकर टेलीविजन देखने वाले दर्शकों ने उनसे हाथ जोड़ लिये।
इन दिनों एंड टीवी पर दिखाया जा रहा हास्य धारावाहिक '' भाभीजी घर पर है '' लोकप्रियता की पायदान पर तेजी से छलांग भर रहा है। इस धारावाहिक के ' कंटेंट ' को हम '' ये जो है जिंदगी '' के साथ तुलना कर देख सकते है। यधपि '' भाभीजी घर पर है '' का कथानक थोड़ा बोल्ड किस्म का है और इसमें फूहड़ता की गलियों में भटकने की गुंजाईश है , परन्तु इसके निर्माता ने संयम बरतते हुए इसे सिर्फ हास्य तक ही समेट रखा है। इसे यूँ भी समझा जा सकता है कि '' तारक मेहता का उल्टा चश्मा '' के पात्र जेठालाल का अपनी शोख पड़ोसन बबीता के प्रति आसक्ति के भाव का यह विस्तारित रूप है। भाभी जी .... के चारो पात्रो के बीच ' टाइमिंग ' बेमिसाल है। टाइमिंग किसी भी कॉमेडी की आत्मा होती है। ' अंगूरी ' के पात्र का अवधी भाषा के साथ खड़ी हिंदी बोलना और उसमे अंग्रेजी घुसा देना लोटपोट कर देता है। विभूति नारायण जिस तेजी से अपने मनोभाव व्यक्त करते है वह भी चमत्कार से कम नहीं लगता।
आम तौर पर सिनेमा और विज्ञापन को तकनीकी भाषा में ' मिरर इमेज थ्योरी ' से परिभाषित किया जाता है। जो समाज में है घटता है वही सिनेमा का कथानक बन जाता है या इसके उलट दर्शक जो परदे पर देखता है उसे अपनी जिंदगी में उतारने लगता है। पिछले दिनों ' टाइम्स ऑफ़ इंडिया ' ने अपने महानगरो के पाठको के बीच सर्वेक्षण के विस्फोटक नतीजे घोषित किये। 50 प्रतिशत से अधिक विवाहित लोगों ने स्वीकार किया की उनके बीच कोई ' तीसरा ' भी मौजूद है। यह बदलता भारत है। आर्थिक सम्पन्नता के साथ बदलते रिश्ते इस दौर हकीकत है।
बहरहाल , सामाजिक बदलावों को रोका नहीं जा सकता परन्तु उन पर नजर रखी जा सकती है। भाभीजी यह काम व्यंगात्मक लहजे में कर रहा है। ''' ये जो है जिंदगी'' अगर हास्य का सोलह आना है तो ''भाभीजी घर पर है '' बारह आना है।
इन दिनों एंड टीवी पर दिखाया जा रहा हास्य धारावाहिक '' भाभीजी घर पर है '' लोकप्रियता की पायदान पर तेजी से छलांग भर रहा है। इस धारावाहिक के ' कंटेंट ' को हम '' ये जो है जिंदगी '' के साथ तुलना कर देख सकते है। यधपि '' भाभीजी घर पर है '' का कथानक थोड़ा बोल्ड किस्म का है और इसमें फूहड़ता की गलियों में भटकने की गुंजाईश है , परन्तु इसके निर्माता ने संयम बरतते हुए इसे सिर्फ हास्य तक ही समेट रखा है। इसे यूँ भी समझा जा सकता है कि '' तारक मेहता का उल्टा चश्मा '' के पात्र जेठालाल का अपनी शोख पड़ोसन बबीता के प्रति आसक्ति के भाव का यह विस्तारित रूप है। भाभी जी .... के चारो पात्रो के बीच ' टाइमिंग ' बेमिसाल है। टाइमिंग किसी भी कॉमेडी की आत्मा होती है। ' अंगूरी ' के पात्र का अवधी भाषा के साथ खड़ी हिंदी बोलना और उसमे अंग्रेजी घुसा देना लोटपोट कर देता है। विभूति नारायण जिस तेजी से अपने मनोभाव व्यक्त करते है वह भी चमत्कार से कम नहीं लगता।
आम तौर पर सिनेमा और विज्ञापन को तकनीकी भाषा में ' मिरर इमेज थ्योरी ' से परिभाषित किया जाता है। जो समाज में है घटता है वही सिनेमा का कथानक बन जाता है या इसके उलट दर्शक जो परदे पर देखता है उसे अपनी जिंदगी में उतारने लगता है। पिछले दिनों ' टाइम्स ऑफ़ इंडिया ' ने अपने महानगरो के पाठको के बीच सर्वेक्षण के विस्फोटक नतीजे घोषित किये। 50 प्रतिशत से अधिक विवाहित लोगों ने स्वीकार किया की उनके बीच कोई ' तीसरा ' भी मौजूद है। यह बदलता भारत है। आर्थिक सम्पन्नता के साथ बदलते रिश्ते इस दौर हकीकत है।
बहरहाल , सामाजिक बदलावों को रोका नहीं जा सकता परन्तु उन पर नजर रखी जा सकती है। भाभीजी यह काम व्यंगात्मक लहजे में कर रहा है। ''' ये जो है जिंदगी'' अगर हास्य का सोलह आना है तो ''भाभीजी घर पर है '' बारह आना है।