Thursday, May 26, 2016

Let's make a Movie :चलो एक फिल्म बनाते है

  फिल्म मेकिंग हमेशा से ही दुरूह माना  जाता रहा है।  यह वाकई में है भी। साधारण सी स्टार कास्ट को लेकर बनने वाली हरेक फिल्म को सबसे पहले जिस दुविधा से दो - चार होना पड़ता है वह है - फाइनेंस।आमतौर पर फिल्मों के लिए फाइनेंस बड़े पूंजीपति ही जुटाते है। यह व्यवस्था भारत से लेकर अमेरिका तक प्रचलित है। विगत कुछ वर्षों में फिल्मों के लिए धन जुटाने का एक और तरीका अस्तित्व में आया है। यह है क्राउड फंडिंग ( crowd funding ) जन सहयोग से फिल्मों के लिए पूंजी एकत्र करना। इंटरनेट के विस्तार ने इस माध्यम को आकार लेने में विशेष योगदान दिया है। हजारों लोगों तक अपनी बात प्रभावशाली ढंग से पहुंचाने के लिए आप किसी और माध्यम पर इतना  निर्भर नहीं रह सकते।
                     
                   
 
crowd funding में प्रायः किसी एक स्थापित वेबसाइट की मदद ली जाती है।  इस वेबसाइट का विश्वसनीय  होना निसंदेह जरुरी होता है। इस वेबसाइट के माध्यम से फिल्म निर्माता अपना आईडिया आम लोगों के साथ शेयर करता है। फिल्म की कहानी के बारे में बात की जाती है , कहाँ शूट  होगी, स्टारकास्ट , फिल्म निर्माण में लगने वाला  समय , जो लोग इन्वेस्ट कर रहे है उसके रिटर्न और सुरक्षा से सम्बंधित सभी पहलुओं को पारदर्शी तरीके से प्रस्तुत किया जाता है।  चूँकि यह तरीका अभी अपने शैशव में है परन्तु इसके बावजूद भी अमेरिका , ब्रिटेन और यूरोपीयन देशों ने    crowd funding को चालबाजों से बचाने के लिए नीति नियम लागू कर दिए है। दिलचस्प तथ्य यह है कि सबसे पहले क्राउड फंडिंग का उपयोग 1997 में ब्रिटिश बैंड marillion ने किया था और 60000 डॉलर जुटाए । इस बैंड  ने इस रकम का उपयोग करते हुए चार  लोकप्रिय  रॉक अलबम जारी किये थे।
क्राउड फंडिंग से बनने वाली पहली फिल्म का श्रेय लेखक निर्देशक मार्क टेंपो को दिया  जाता है जिन्होंने अपनी अधूरी फिल्म war correspondent (1999 ) को 25 निवेशकों से उगाहे 125000 डॉलर से पूर्ण किया था।
                        भारत में क्राउड फंडिंग का सबसे सुन्दर उदाहरण मौजूद है फिल्म '' मंथन ''(1976 ) .. इस फिल्म को गुजरात मिल्क मार्केटिंग फेडरशन  ( अमूल ) को दूध सप्लाई करने वाले 5 लाख ग्रामीणों ( प्रत्येक से 2 \-मात्र ) के सहयोग से बनाया गया था।  स्मिता पाटिल , गिरीश कर्नार्ड , नसीरुद्दीन शाह द्वारा अभिनीत और श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित यह फिल्म 1970 में आरम्भ हुई श्वेत क्रांति  ( white revolution ) के महत्व  को दर्शाने के लिए बनाई गई थी। इस फिल्म का थीम सांग ' मारो  गाम कठियावाड़ , जां दूध की नदिया बहे , आज तक अमूल के विज्ञापन में उपयोग किया जाता है।
                         
     देश में बहुत से नवोदित और योग्य फिल्मकार इस माध्यम का सहारा लेकर अपनी प्रतिभा सिद्ध कर रहे है परन्तु वह बात नजर नहीं आरही जो इन दिनों हॉलीवुड में दिखने लगी है।  2015 में स्वतंत्र फिल्मकारों ने   क्राउड फंडिंग द्वारा 5 अरब डॉलर का निवेश हासिल किया है।यद्धपि भारत में भी इस विधा का उपयोग होने लगा है और रजत कपूर , ओनिर जैसे प्रयोगधर्मी अपनी सफलता के परचम फहरा चुके है परन्तु समानांतर सिनेमा जैसी सफलता अभी दूर है।   बॉलीवुड के लिए क्राउड फंडिंग का  रास्ता अभी लंबा प्रतित हो रहा है।
                       

3 comments:

  1. Lovely article sir. Will inspire many people to be a part of film making

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  2. Lovely article sir. Will inspire many people to be a part of film making

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