Wednesday, October 22, 2014

Strange life : जिंदगी कैसी ये पहेली

जयललिता खुली हवा में सांस ले   रही है। वे अपने समकालीन दागी राजनेताओ से ज्यादा किस्मत वाली है। लालू यादव ने ढाई माह जेल में गुजारे तब कही जमानत नसीब हुई।  जयललिता को महज इक्कीस दिन ही गुजारने पड़े। ' भारत ' नाम की फिल्म में प्रतिपल कुछ अनसोचा घटता रहता है। जो लोग कल तक भाग्य विधाता हुआ करते थे अब परिदृश्य से लगभग गायब है। जो लोग ' एक्स्ट्रा ' कलाकार मान लिए गए थे वे लोग आर्क लाइट में आगये है। जिन्हे यह मान लिया गया था कि वे महज खलनायक बने रहेंगे परन्तु अब पूरी फिल्म की पटकथा उन्हें ही देख कर लिखी जा रही है।  जिन की पार्टियों में बुलावा आजाने पर लोग इतराकर तिरछे हो जाया  करते थे वे जज के सामने घुटनो पर बैठकर गिड़गिड़ा रहे है। अब उनसे मिलने भूले से ही कोई जाता है। क्या कांग्रेस , क्या भाजपा- सभी के नेता उनका आशीर्वाद पाने लाइन में खड़े रहते थे उन्हें अपने सारे वार त्यौहार सींखचों के पीछे मनाने पड़  रहे है। अब उनसे कोई हरिओम नहीं करता।
                         
'  जिंदगी ' नाम की फिल्म में कोई पटकथा तय नहीं होती। कालजयी फिल्म ' आनद ' में आनंद जिंदगी के फलसफे को समझाते  हुए कहता है '' बाबू मोशाय ! हम सभी कठपुतलियाँ है जिनकी डोर ऊपर वाले के हाथ है।  वह हमसे खेलता रहता है।  जिस दिन खेल से उसका मन भर जाता है , वह डोर खींच लेता है। जिंदगी और मौत के दो छोर के बीच के समय ' जीवन ' को भरपूर जीने लायक बनाने के लिए बहुत सी फिल्मे और किताबों से बाजार भरे पड़े  है। प्रसिद्द लेखक   रोबिन शर्मा ने तो अपनी पुस्तक का  शीर्षक ही महज इस विचार पर रख दिया है '' आपके मरने के बाद कौन रोयेगा ( who will cry when you die ?)
                           
   परिवर्तन का दौर अनवरत जारी है।  कल तक जो साथ थे उनके साथी बदल गए है। सलमान कैटरीना अब उतने नजदीक नहीं दीखते। रणवीर कपुर का नाम कितनी तारिकाओं के साथ जुड़ चूका है स्वयं उन्हें भी नहीं याद होगा। दिवालिया होने की कगार पर खड़े विजय माल्या के सुपत्र सिद्धार्थ ने एक समय दीपिका पादुकोण को एक फ्लैट गिफ्ट किया था आजकल वे फ्रीडा पिंटो  के साथ नजर आते है। भारत अस्सी  दशक वाला नहीं रहा न ही बॉलीवुड। सब कुछ बदल रहा है।

 Image courtesy google.
                                          

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